हम पद,उम्र या धन के मामले में बड़े है तो इस बात का घमंड नहीं करना चाहिए:अशोक कंसल

 कहानी - श्रीराम अपने वनगमन में थे। एक के बाद एक ऋषि-मुनियों के आश्रम में जा रहे थे। एक ऋषि, जिन्हें सुतीक्ष्ण के नाम से जाना जाता था। वे अगस्त्य मुनि के शिष्य भी थे।


सुतीक्ष्ण मुनि ने सुना कि श्रीराम उनके आश्रम की ओर आ रहे हैं। उन्हें प्रतीक्षा थी कि श्रीराम उनके जीवन में कब आएंगे। वे राम से बहुत प्रेम करते थे। श्रीराम के प्रति उनके मन में भक्ति थी।

सुतीक्ष्ण मुनि ने सोचा कि मैं खुद आगे बढ़कर श्रीराम को रास्ते में रोक लूं, प्रणाम करूं और अपना परिचय दूं। सुतीक्ष्ण को याद आया कि मैंने न तो इतनी भक्ति की है और न ही मैं इस योग्य हूं जो राम से सीधे जाकर मिलूं। राम बहुत बड़े व्यक्ति हैं। क्या वे मुझे स्वीकार करेंगे? ऐसे विचार सुतीक्ष्ण के मन में चल रहे थे।

सुतीक्ष्ण जी सोचते जा रहे थे कि कैसे श्रीराम से मिलूं? वे आनंद में नाच भी रहे थे। एक पेड़ के पास श्रीराम ने मुनि को नाचते हुए देखा तो वे समझ गए कि ये मेरे लिए आनंद में झूम रहे हैं, लेकिन संकोच भी कर रहे हैं कि मुझसे कैसे मिलें? तब राम ने विचार किया कि मैं ही उनके पास चला जाता हूं।

जैसे ही श्रीराम सुतीक्ष्ण मुनि के सामने पहुंचे तो सुतीक्ष्ण बेहोश हो गए। श्रीराम ने उनकी बेहोशी दूर की। जब सुतीक्ष्ण को होश आया तो वे रोने लगे और बोले, 'आप इतने बड़े व्यक्ति हैं, आप स्वयं चलकर मेरे पास आ गए।'

श्रीराम ने कहा, 'हे मुनि, इस संसार में कोई बड़ा छोटा नहीं होता है। स्थितियां ऐसी हो सकती हैं कि किसी को बड़े पद पर ले जाएं, मैं आपके पास इसीलिए आया हूं कि अब ये भेदभाव खत्म होना चाहिए।'

सीख - श्रीराम का ये आचरण हमें सिखाता है कि अगर हम पद, उम्र या धन के मामले में बड़े हैं तो हमें इस बात का घमंड नहीं करना चाहिए। सभी के साथ सम्मान के साथ मिलना चाहिए। अधिकतर बड़े लोग ये उम्मीद करते हैं कि लोग उनके पास आएंगे, वे किसी के पास नहीं जाते हैं, लेकिन श्रीराम ने सीख दी है कि हम कितने भी बड़े क्यों न हों, आगे बढ़कर दूसरों से मिलना चाहिए।