पीओके-मुक्ति के बाद अब चीन का नंबर :पंकज गोयल

भारत तिब्बत सहयोग मंच के महामंत्री ने दिया देश को नया संकेत
कैलाश मानसरोवर सहित तिब्बत की आजादी को ले के तल्ख हुये पंकज गोयल



 


 "भारत-तिब्बत सहयोग मंच" वास्तव में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का परस्पर-सहयोगी घटक है। संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह जी (रज्जू भैय्या) के आशीर्वाद से प्रारंभ हुए इस संगठन के अब 21 वर्ष हो गए हैं। इस तरह संगठन के प्रबल ऊर्जावान महामंत्री श्री पंकज गोयल मूलतः संघ की धारा से निकले व्यक्ति हैं । वह संगठन के और अधिक प्रभावी व मुखर स्वरूप को लेकर निरंतर जुटे हैं 


 


दिल्ली सर्च :  पंकज जी आखिर इस संगठन की आवश्यकता क्यों पड़ी ?
पंकज गोयल :  कोई भी घटना अनायास ही नहीं घटती।  और उद्देश्यपरक संगठन तो कभी बेवजह तो बनते ही नहीं। आजादी के बाद से नेहरू की अपनी सोच ने देश को न केवल भ्रम के रास्ते पर डाला बल्कि खतरों को भी न्यौता दे डाला। मुझे कतई संकोच नहीं, कि नेहरू की गलत सोच ने देश को चीन के समक्ष एक निवाले के रूप में सौंप दिया । जिसका खामियाजा आज तक हम भुगत रहे । चीन स्वयं में एक षड्यंत्रकारी और मानवता के नाम पर कलंकित देश है और जो नेहरू के अति आत्मविश्वास वह अति-भरोसे को समझते हुए समूचे तिब्बत को हड़पते हुए भारत पर हमला करके हजारों वर्ग किलोमीटर भूमि पर अवैध कब्जा कर ले गया, उस चीन ने 1962 में जो हम सब से विश्वासघात किया, न तो वह तब भुलाया जा सकता था और ना ही अब । जबकि वह निरंतर आतंकवाद पर दोगले रवैये को अपनाकर हमारे देश को निरंतर नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहा है । भारत-तिब्बत सहयोग मंच चीन के उस चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए महायुद्ध की तैयारी में जुटा है और विश्वास रखिए हम चीन को उसकी औकात में ला देंगे।


दिल्ली सर्च: संगठन की स्थापना पर प्रकाश डालें। 
पंकज गोयल:  5 मई 1999 को हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला नामक ज़िले में तिब्बत के धर्मगुरु जो अब वहां ही रहते हैं, उन परम पावन दलाई लामा जी एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक परम पूज्य कु.सी. सुदर्शन जी की उपस्थिति में व उन दोनों के मार्गदर्शन में सम्यक विचारोपरांत संघ के वरिष्ठ प्रचारक माननीय इंद्रेश जी द्वारा इस संगठन की नींव रखी गई । आपको मालूम ही है, मिश्रा जी !  तिब्बत क्षेत्र से हमारे सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व नितांत सहज संबंध रहे हैं।  बुद्धिज्म का जो स्वरूप वहां था, उस दृष्टि से वे स्वयं  भारत को बुद्ध का देश होने के नाते गुरु और स्वयं को चेला मानते आए हैं। इस नाते भी और हमारे जगत के सबसे बड़े देव, देवों के देव, महादेव शिव-शंकर भोलेनाथ का अपना मूलगांव कैलाश-मानसरोवर भी तिब्बत में है। इसे चीन ने हड़प लिया और बहुत से अंकुश लगा डाले। इन सब पर संगठन निरंतर आंदोलन चला रहा है। श्रावण-संकल्प अभियान तथा लाखों हस्ताक्षर युक्त ज्ञापन तैयार करना भी हमारे इसी मंच के बदौलत हो रहा है।


दिल्ली सर्च: रणनीति क्या है? 
पंकज गोयल: चीन को उसकी औकात याद दिलाने की है।  उसे याद रखना होगा कि हम सन 62 वाले भारत नहीं है। जनता द्वारा खड़ा हुआ आंदोलन ही एक बहुत बड़ा युद्ध होता है और अब भारत देश के लोग चीन के विरुद्ध उठ खड़े हुए हैं। हर दिवाली चीन की सामग्री का स्वेच्छा से जन बहिष्कार किए जाने को कोई कम समझ सकता है क्या? यह सब वातावरण पूरे देश में भारत तिब्बत सहयोग मंच ने तैयार किया है। अब इन 21 वर्षों में मंच ने क्या नहीं किया। बौद्धिक स्तर पर जाकर लोगों के बीच में तिब्बत की आजादी हमारे लिए क्यों जरूरी है, इस विषय पर जागरूक किया। हमारे इस अपरोक्ष युद्ध का ही कारण है कि हमारे यहां से निकली गूंज की प्रतिध्वनि पूरी दुनिया में सुनाई पड़ रही है। हम अपने आंदोलनों को और धार देने जा रहे। हमारे पास माननीय इंद्रेश कुमार जी जैसे युगपुरुष हैं, जो संगठन के प्राण-तत्व है। सुदर्शन जी की अनंत-प्रेरणा से चल रहे, इस संगठन को साथ विख्यात चिंतक प्रोफेसर कुलदीप चंद अग्निहोत्री जी का मिलता है और महाराष्ट्र के राज्यपाल बनने से पूर्व आदरणीय भगत सिंह कोश्यारी जी का भी पूर्ण समर्थन रहा । हमारा हर एक कार्यकर्ता चीन के सवा लाख सैनिक पर भारी पड़ने वाला योद्धा की तरह है। भरोसा कीजिये, चीन को तिब्बत से पीछे हटना ही होगा। चीन को चीनी दीवार के भीतर वापस जाना ही होगा ।


दिल्ली सर्च: राह में कठिनाई है क्या? 
पंकज गोयल:  अजी, कुछ भी नहीं। मैं संघ की खान से तप कर निकला व्यक्ति हूं । जहां सिखाया गया है कि तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें-न रहें। महादेव की कृपा और माननीय इंद्रेश जी भाई साहब के आशीर्वाद के बाद भला कोई कठिनाई रह जाती है क्या।  हां, कठिनाई चीन को अब हमसे ज्यादा है। सतर्क हम आपको अब पहले से ज्यादा रहना होगा। पीएम मोदी जी  व गृहमंत्री अमित शाह जी ने जन-भावना को ही देखते हुए कश्मीर को एक झटके में दुरुस्त कर दिया। पाक अधिकृत कश्मीर भी अब जल्द ही भारत का हिस्सा होगा, यह तय किया ही जा चुका है। ऐसे में 'चाइना ऑक्यूपाइड इंडिया' अर्थात 'चीन अधिकृत भारत' भी जल्द ही भारत को वापस मिलेगा, यह आत्मबल के आधार पर कह रहा हूं। वर्तमान राष्ट्रवादी सरकार भी इस बात को समझती है और निश्चय ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्व की बड़ी ताकतें भी चीन के घिनौने स्वरूप को समझ गए हैं। एक बात और कहूंगा कि अब हम इस देश के हर नागरिक को यह विषय समझ में आना चाहिए कि तिब्बत की आजादी से हमें क्या लाभ है और जब तक वह आजाद नहीं है, हम हर रोज कितना संकट झेल रहे हैं, यह जागरूकता पैदा करना ही हमारी रणनीति है। और यही हमारी फतेह का कारण बनेगा।


दिल्ली सर्च:ऐसे संकेतक, जिससे लगे कि आंदोलन सफल हो रहा है?
पंकज गोयल: यह अच्छा सवाल है। डोकलाम में चीन को अब हम ने थप्पड़ मारा, क्या यह सफलता नहीं? हर साल 50-100 मीटर आगे बढ़ रही चीन की सेना को हमारी सेना अब कठोरता से  रोक दे रही, क्या यह सफलता नहीं ? जम्मू कश्मीर में 370 व 35ए पर उस चीन की जुबान तक नहीं खुल पाई, जो लद्दाख क्षेत्र को भी बार-बार अपना बताने लगा था, क्या यह सफलता नहीं? अब उस पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस लेने के भारत के निर्णय की घोषणा पर भी चूं नहीं बोल पाया चीन, जो उस क्षेत्र में तरह-तरह के उपक्रम लगा चुका है और चीनी अब वहां रहने भी लगे हैं, फिर भी क्या यह सफलता नहीं ? और हां, अरुणाचल प्रदेश को अपना भाग बताने वाले चीन की हेकड़ी घुस चुकी है, जब मंच तवांग तीर्थ यात्रा हर वर्ष सफलतापूर्वक आयोजित कर भारत के अन्तिम जिले तवांग (अरुणाचल प्रदेश) जहाँ भारत तिब्बत सीमा (बुमला बॉर्डर) तक भारतीयों को ले जाकर दिखाता है, दुष्ट चीन की कायरता, संस्था और क्रूरता के किस्से, क्या यह सफलता नहीं? 
 अब समय बदल चुका है। जिससे हमारे देश की कोई सीमा छूती भी नहीं थी। आज वह कश्मीर, हिमाचल, उत्तराखंड, लद्दाख से लेकर उधर उत्तर -पूर्व की सात बहनों वाले राज्यों तक को प्रभावित करता रहा है लेकिन मंच के कार्यों और अभियान ने अपने देश की जनता को बहुत जागरूक किया है।


दिल्ली सर्च : अब लक्ष्य क्या है और कहां तक जाना है? 
पंकज गोयल: हमारा एक स्लोगन है और वह बड़ा सफल है और इसे सभी पसन्द भी कर रहे हैं । वह यह है, "न चीनी उत्पाद न चीनी उत्पात"।
 ध्यान दीजिएगा इस पर कि चीन अपनी अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करके अपनी सैन्य शक्ति को मजबूत करता रहा है। हालांकि तिब्बत को हड़पने के बाद मंगोलिया, ताइवान, जापान, रूस भूटान आदि उसके सीमावर्ती राष्ट्र उससे खुश नहीं रहते । चीन का वामपंथ वहां के बुद्धत्व को दबा के रखे हुए है। चीन निरंकुश था और निरंकुश है। अपने कम्युनिज्म के नाम पर लाखों मुस्लिमों को हर साल मौत के घाट उतार देता है। बीजिंग के थ्यानमेन चौक की घटना को कोई कैसे भूल सकता है भला। जब उसने अपने ही अनगिनत युवाओं को टैंकों से कुचलकर मार डाला। इस राक्षस देश को सबक केवल भारत ही सिखा सकता है। हम अपने घर के बच्चों को तिब्बत की हमारे लिए आवश्यकता व प्रासंगिकता और चीन की दुष्टता जरूर पढ़ाएं और सब के सब संकल्प लें कि चीनी उत्पादों की खरीदारी आज से बंद। इनके महाघटिया उत्पादों को हम थोड़े से सस्ते होने की भूल में खरीद कर दुनिया के सबसे बड़े दुश्मन को और ताकतवर बना रहे। और  आपके पाठकों से कहूंगा संभव हो तो मंच के अभियानों से कार्यक्रमों से जुड़िए और जोड़िए। जहां बैठे हैं, वहां तिब्बत की जरूरत, कैलाश मानसरोवर की आवश्यकता व चीन की दुष्टता पर चर्चा अवश्य करिये। तवांग तीर्थयात्रा पर भी जरूर चलिए। हालांकि इस देश का एक-एक बच्चा व हरेक व्यक्ति जब इस तरह करेगा तो उसी दिन हम न केवल चीन को शिकस्त दे देंगे बल्कि हम तिब्बत को आजाद करा चुके होंगे।