बैर, ईष्र्या, नफ़रत, अहंकार से मुक्ति ही है सच्ची आज़ादी : सद्गुरु माता सुदीक्षा महाराज


नई दिल्ली,  सच्ची आज़ादी एवं मुक्ति का अर्थ है बैर, ईष्र्या, नफ़रत, अहंकार तथा अन्य सभी नकारात्मक विचारों एवं भावनाओं का त्याग। जो भक्त ब्रह्मज्ञान प्राप्त कर लेते हैं उनके मनों से ऐसी सभी दुर्भावनायें दूर हो जाती हैं तथा प्रीत-प्यार, नम्रता, विशालता और सहनशीलता जैसे सद्गुण आ जाते हैं। देश की आज़ादी भी आध्यात्मिक जागरूकता से और सार्थक बन जाती है।
यह उद्गार निरंकारी सद्गुरु माता सुदीक्षा महाराज ने कल सायं यहां मुक्ति पर्व समागम में दिल्ली तथा अन्य क्षेत्रों से आए विशाल जन-समूह को सम्बोधित करते हुए व्यक्त किए। मुक्ति पर्व के अवसर पर सद्गुरु माता की अध्यक्षता में आयोजित इस मुख्य समागम के साथ-साथ देश भर में मिशन की शाखाओं ने भी इसी प्रकार विशेष सत्संग कार्यक्रम आयोजित किए।
मुक्ति पर्व पर मिशन के अनुयायी अपने पूर्व सद्गुरु तथा उनके साथ ऐसे महान भक्तों को अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं और उनके जीवन से प्रेरणा प्राप्त करते हैं जिन्होंने ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके इस अमृत को जन-जन तक पहुंचाने के लिए जीवन प्रयन्त प्रयास किए। उन्होंने अपने सुख आराम की परवाह किए बिना तप त्याग की भावना से मिशन के प्रीत-प्यार, नम्रता, सद्भाव और सहनशीलता जैसे गुणों को अपने जीवन में अपनाया और प्रचार किया।
सद्गुरु माता ने कहा कि जीवन में हर चीज़ आसान नहीं होती। कई बार दूसरे लोग हमारे साथ इतना बुरा करते हैं कि हम भी बदले में पत्थर दिल बन जाते हैं और किसी से भी प्यार से पेश आने की जरूरत नहीं समझते। परंतु अगर आप संत निरंकारी मिशन के अनुयायी हैं तो यहां की सिखलाई तो यह है कि दूसरों की खामियों के पीछे ना जाकर अपना सुधार करने का प्रयास करें।
देश की आज़ादी का ज़िक्र करते हुए सद्गुरु माता ने कहा कि इसे भी हम और सार्थक बना सकते हैं यदि इसके साथ आध्यात्मिक जागरुकता को शामिल कर लें। ब्रह्मज्ञानी, परिवार, समाज तथा देश के प्रति अपनी ज़िम्मेदारियों को भी बेहतर रूप में निभा सकते हैं क्योंकि उनके मन दोष-मुक्त हो जाते हैं, सभी से प्यार, नम्रता तथा सद्भाव के साथ व्यवहार करते हैं। भक्त फूलों की तरह कांटों में भी रहना जानते हैं जो अपनी सुंदरता तथा मधुरता का त्याग नहीं कर देते। बल्कि जब इकट्ठे होकर एक माला का रूप धारण कर लेते हैं तो उनकी सुंदरता और बढ़ जाती है।
रक्षा बंधन का उल्लेख करते हुये माता ने कहा कि हमारा सबसे बड़ा संरक्षक तो निरंकार ही है। अतः हम इसी का आसरा लेकर आगे बढ़ते जाएं। हमें यह भी विश्वास होना चाहिए कि यह पूर्ण है और पूर्ण का किया हर काम पूर्ण होता है चाहे वह हमारे हित में हो या ना हो।
मुक्ति पर्व के संदेश को दोहराते हुए सद्गुरु माता ने कहा कि हमें अपने बुजुर्गों के जीवन से प्रेरणा लेनी होगी। उन्होंने इस निराकार प्रभु परमात्मा का ज्ञान प्राप्त करके इसे जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया। हम भी यदि उन्हीं सिद्धान्तों पर अमल करेंगे तो जीवन की ऊँचाईयों तक पहुंच सकेंगे।
इस दिवस के महत्व की बात करें तो सबसे पहले उस समय के सद्गुरु बाबा गुरबचन सिंह की माता जिन्हें निरंकारी भक्त जगतमाता बुधवन्ती कहकर सम्बोधित करते थे उनका नाम आता है। वह 15 अगस्त, 1964 को ब्रह्मलीन हुए थे और यह दिवस उन्हीं के नाम से उन्हीं की याद में मनाया जाता था। इसके पश्चात् जब 17 सितंबर, 1969 को शहनशाह बाबा अवतार सिंह ने इस नश्वर शरीर का त्याग किया तो उनका नाम भी इसी दिन के साथ जोड़ दिया गया। मगर इसका नाम मुक्ति पर्व वर्ष 1979 में रखा गया जब संत निरंकारी मण्डल के प्रथम प्रधान लाभ सिंह भी उस वर्ष 15 अगस्त को ही ब्रह्मलीन हुए और उनके साथ उन भक्तों को भी याद किया जाने लगा जिन्होंने ब्रह्मज्ञान प्राप्त करके इसे जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास किया। उन्होंने मिशन की शिक्षा को पहले स्वयं अपने जीवन में ढाला, फिर दूसरों को प्रेरणा दी। वर्ष 2015 से निरंकारी राजमाता और गत् वर्ष से माता सविन्दर हरदेव सिंह को भी इसी दिन श्रद्धा सुमन अर्पित किए जा रहे हैं।
कल के समागम में अनेक वक्ताओं ने शहनशाह बाबा अवतार सिंह को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि ब्रह्मज्ञान प्रदान करने की विधि, पांच प्रण तथा मिशन की विचारधारा को अंतिम रूप देने का श्रेय उनको ही जाता है जबकि जगतमाता बुधवन्ती सेवा की जीवन्त मूर्ति थी। निरंकारी राजमाता ने अपने कर्म से इस मिशन का प्रचार किया।