आज दुख अशान्ति का कारण ही है कि हम अपने ही मन के वश हो चुके


देहरादून, प्रजापिता ब्रह्मकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के स्थानीय सेवाकेन्द्र सुभाषनगर में सत्संग में प्रवचन करते हुए राजयोगिनी ब्रह्मकुमारी मन्जू बहन नेे 'रक्षाबन्धन और स्वतन्त्रता दिवस' पर चर्चा करते हुए बताया कि रक्षाबन्धन अर्थात रक्षा भी और बन्धन भी। प्रश्न उठता है कि यह कैसा बन्धन है? और किसे रक्षा की आवश्यकता है? उन्होंने कहा कि यह तो हम सब जानते हैं कि बहन अपने सम्मान की रक्षा के लिए भाई से वचन लेती है अथवा उसे समय पर रक्षा देने के बन्धन में बाँधती है। लेकिन अगर बहन बड़ी है और भाई छोटा बच्चा है, तो क्या वह बहन की रक्षा कर सकेगा ? और फिर पिता, चाचा, काका भी तो रक्षा करते हैं तो उन्हें यह बन्धन क्यों नहीं बाँधती ? उन्होंने कहा कि वास्तव में आध्यात्मिक रूप से रक्षा की जरूरत तो शरीर की मालिक आत्मा को है, अपनी ही कमजोरियों से, मनोविकारों से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार; जिनके कारण हरेक मनुष्यात्मा दुखी है। 


कहा कि संसार में जब मनोविकार चारों दिशाओं में व्याप्त हो जाते हैं, सभी अपने को असुरक्षित अनुभव करते हैं, ऐसे समय पर आत्माओं को विकारों व दुखों से छुड़ाने के लिए पिता परमात्मा पवित्र रहने का संकल्प व प्रतिज्ञा करवाते हैं जिसकी यादगार के रूप  में रक्षा का सूत्र अथवा राखी बाँधने की रस्म बन गई है। कहा हम पिछले 72 वर्षों से स्वतन्त्रता दिवस प्रति वर्ष मनाते आये हैं। हमें इस बात की खुशी है कि हमने फिरंगियों को देश से निकाल कर आज़ादी प्राप्त कर ली परन्तु क्या हम सचमुच आज़ाद हुए, नहीं ना। हम तो अपने ही मन के गुलाम बन कर रह गये। आज दुख अशान्ति का कारण ही है कि हम अपने ही मन के वश हो चुके हैं जोकि विकारों के वश है। तो राजयोग ही एकमात्र उपाय है जिससे हम इन विकारों पर विजय पा कर सदा के लिए अपने मन को सुमन बना सकते हैं और सच्चा सुख शान्ति प्राप्त कर सकते हैं। सभा में उपस्थित जनों में, निर्मला, अनंत, प्रीति, मनसुख, गंगा, रमेश, मौसम, जशोदा, मोहन, रघुवीर, अनंत , लखीराम, दिनेश, मोहित तथा अन्य मौजूद थे।