गत दिवस दिल्ली सरकार ने महिलाओं के लिए राज्य में बसों और मेट्रो में सफर मुफ्त करने की घोषणा की। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का दावा है कि वह इस घोषणा को दो-तीन महीने में लागू कर देंगे। सतही अनुमानों के मुताबिक इस घोषणा को लागू करने में लगभग 1000 -1200 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। यह खर्च दिल्ली सरकार ही उठाएगी। यह कदम उठाकर दिल्ली सरकार ने समाज की उन्नति में एक उम्दा संदेश दिया है। साथ ही जाति, क्षेत्र आदि के आधार पर आज के वर्गीकृत समाज में इस घोषणा ने स्त्री के हक और नर-नारी की समानता की नई बहस को जन्म दिया है। हालांकि, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि यह आगामी विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर की गई एक लुभावनी घोषणा है, जिसके जमीन पर कार्यान्वयन में काफी समय लग सकता है। इसके अलावा सवाल यह भी उठता है कि इस तरह की
चुनावी घोषणाओं से महिला पुरुषों के विभेद की नई रेखा खिंचेगी, जिससे सामाजिक ताने बाने पर भी विपरीत असर पड़ सकता है। हालांकि, हमें अब यह तय करना होगा कि इस तरह की घोषणाएं चुनावी जंग का हथियार न बनें। बल्कि जरूरतमंदों, शोषित और वंचितों के हक के लिए व्यवस्थित कार्यक्रम और योजनाएं बननी चाहिए, जिनका लाभ आखिर में खड़े लोगों तक पहुंचना चाहिए। दिल्ली सरकार की यह घोषणा महिला सशक्तिकरण, उनके स्वावलंबन और स्वाभिमान की दिशा में उठाया गया एक बेहतरीन कदम साबित हो सकता है, बशर्ते यह छल और चुनावी जुमला साबित न हो। उम्मीद है कि इससे प्रेरणा लेकर अन्य राज्य सरकारें भी इस दिशा में जरूरी कदमों को उठाएंगी। अब समय है कि नारी शक्ति बंधनों को तोड़कर मानवता के उत्थान में अपना पूरा योगदान दे।