आत्मा की अज्ञानता को दूर करें


आज भी यही ध्यान दिलाया जा रहा है कि इस अमोलक जन्म को पाकर हम इस परम अस्तित्व परमात्मा ईश्वर निराकार का बोध हासिल करें। इससे नाता जोड़े, आत्मा की अज्ञानता को दूर करें, मन के भीतर समाए हुए अंधकार को दूर करें ताकि आत्मा का भी भ्रम मिटे और मन की भ्रांतियां भी दूर हों और हम हकीकत में स्थित हो जाएं। महापुरुष संतजन उस मूल के साथ जुड़ने की प्रेरणा देते आए हैं जो मूल सारे संसार के रचयिता के रूप में है जो पालनहार के रूप में हैं, जिसके आधार के ऊपर ये सारी कायनात टिकी हुई है। । नाता जोड़ने का मतलब यही है कि इसका बोध हो और इसका एहसास बना । रहे। वाणी से तो इसके नाम लिए जाते हैंजुबान के द्वारा इसके नाम का रटन तो हो रहा है लेकिन महापुरुष संतजन इसको जुड़ा हुआ नहीं मानते। हम मिसालें सुनते आ रहे हैं। । एक भिखारी जुबान से तो राम का । अल्लाह का उच्चारण लगातार कर रहा है। लेकिन ध्यान सारा का सारा उस तरफ लगा हुआ है कि कौन मेरी आवाज सुनकर कुछ पैसे निकालकर मेरे इस कटोरे में। डालता है, तो संतों-महापुरुषों ने इसको जुड़ा हुआ नहीं माना। जुड़ा हुआ वो माना। जाता है जो वाकई उठते-बैठते इसका एहसास करता है। इसकी मौजूदगी के । एहसास से युक्त रहता है। जब इंसान इस परम अस्तित्व परमात्मा को जान लेता है मान लेता है और ज्ञान की दृष्टि से इसके दर्शन करता हुआ इस संसार में विचरण करता है तो फिर मन में भाव जो हैं। मानवता इंसानियत को मजबूती देने वाले बन जाते हैं। |. जब भी हम भावनाओं का जिक्र करते हैं वो दुर्भावनाएं हैं या शुद्ध भावनाएं हैं। ये भावनाएं मन में ही होती हैं, तो अगर मन को नाता इससे जुड़ गया तो मन को ही सुंदरता प्राप्त होगी और फिर भावनाएं भी सुंदर होती चली गई, इंसानियत वाली होती चली गई, प्रेम-करुणा-दया वाली होती चली गई, तो फिर वास्तविकता में इंसान का जो वजूद है, शरीर है उसका भी महत्व बन जाता हैजैसे एक बर्तन, एक कोई टीन का डिब्बा होता है उसमें अगर कूड़ा-करकट पड़ा हुआ है वो घर के आंगन में पड़ा हुआ है, उसकी हम कोई देखभाल नहीं करते हैं, लेकिन उसी डिब्बे को हम सोचें कि उसमें हमने घी या कोई और ऐसा पदार्थ डाल रखा है तो फिर हम उसको इस तरह से आंगन में नहीं रखते।उसकी संभाल करते हैं क्योंकि उसमें जो वस्तु पड़ी हुई है उसकी कीमत हम जानते हैं। उस बर्तन की कीमत उस लिहाज से बढ़ गई क्योंकि उसमें वस्तु सुंदर पड़ी हुई है, कीमत पड़ी हुई है। इसी प्रकार से अगर मन में ये सुंदर भावनाएं अपनी जगह स्थापित कर लेती हैं इस मालिक-खालिक से जुड़कर इसका एहसास हो जाता है तो फिर वास्तविकता में उस जिस्मानी वजूद, उस शरीर का भी महत्व बन जाता है।