यह सारी कायनात तुझ पर ही आधारित है। गुरु-पीर-पैगम्बर यही संदेश देते आये हैं कि हे इंसान, वह कदम उठा ले जिससे तेरी आत्मा का कल्याण हो और जीवन का भी रूप निखरे लेकिन इंसान उनके संदेश की कद्र नहीं करता है। वह नादानी करके, गफलत की नींद में सोकर अंधकार में सारा जीवन व्यतीत कर देता है। वह संतों वाली कल्याणकारी दिशा नहीं अपनाकर डूबने वाला रास्ता चुनता है जो उसके पतन का कारण बनता है। सांसारिक प्रवृत्तियां, तूतू, मैं-मैं, निंदा, दूसरों का हक छीनना, दूसरों को नीचा मानना, कड़वाहट और कठोरता इसके स्वभाव का हिस्सा बनी रहती हैं। प्राचीन काल में भी जिस-जिसने विनाशकारी डगर को अपनाया, चाहे वह कितनी भी शक्तियों का मालिक क्यों न । हो, वह अपयश दिलाने का कारण बनी जिसके कारण जीवन बेमायने हो गया और कुछ भी हासिल न हुआ। खाली हाथ आये । और खाली हाथ गये ही नहीं बल्कि बोझ । लेकर गये। भक्तजन जो भक्ति वाली डगर अपनाते हैं, वे भी जाते तो खाली हाथ ही हैं लेकिन अज्ञानता का तमाम बोझ उतार कर जाते हैं, आवागमन के बंधन से मुक्त होकर जाते हैं। इंसानों को भी यही समझाया गया कि तुम भी इस बोझ के साथ जीवन के सफर को तय न करो। सत्य परमात्मा के साथ नाता जोड़ो, इसे आधार बना लो क्योंकि जो कायम रहने वाला निरंकार है, इससे जुड़कर ही आत्मा का कल्याण होता इससे जड़कर ही आत्मा का कल्याण होताहै, मन में सुंदरता आती है और इंसानी मूल्यों को मजबूती मिलती हैब्रह्मज्ञानी । संतों की महिमा युगों-युगों से गाई जा रही है क्योंकि उन्होंने भक्ति, श्रद्धा, करुणा, जीवन में महत्ता दी। वे उस दिशा की तरफ बढ़े जिस ओर बढ़ने से जीवन में आनंद प्राप्त होता है। चौरासी लाख योनियों में से केवल इंसान की योनि है जो भोग योनि नहीं है। इंसान के लिए परमात्मा नहीं, दुनिया के प्रलोभन विशेषता रखते हैं, इसलिए वह हीरे जैसा जन्म कौड़ियों के मोल गंवा देता है। वह कुदरत के नजारों में इतना खो जाता है कि कुदरत को बनाने वाले कादर यानि परमात्मा की तरफ इसका ध्यान ही नहीं जाता। इसलिए गुरु-पीर-पैगम्बरों ने युगों-युगों से यही संदेश दिया कि हे इंसान ! इस निरंकार से नाता जोड़ले, परम अस्तित्व को जान कर अपनी असली पहचान कर ले। सत्य का बोध हासिल करने से, परमात्मा से नाता जोड़ने से ही घट-घट में प्रभु के नूर का दीदार होता है, हृदय में दूसरों के प्रति सद्भाव पैदा होता है। इस सत्य की अहमियत है और इसी का आधार लेने से ही वास्तविकता में जीवन मूल्यवान बनता है। एक इंसान पर्वत की ऊंची चोटी पर चढ़ गया। वह ऊंची चोटी उसका आधार बन गई तो वह भी ऊँचा हो गया क्योंकि उसने ऊँचे को आधार बना लिया। इसी प्रकार । यह सारी सृष्टि जिसके इशारे पर चल रही। है, वह यही एक परमात्मा है जो ऊंचे से। ऊंचा है
परमात्मा से नाता जोड़ने से ही घट-घट में प्रभु के नूर का दीदार होता है