परमात्मा को जानो, मानो और फिर एक हो जाओ


भक्तजन फरमाते हैं कि हे इंसान! अगर तू किसी का भला नहीं कर सकता तो कम से कम बुराई करना तो छोड़ दे, कम से कम दूसरों का नुक्सान करने के रास्ते पर मत चल। अपने आप को संभाल ले, ऐसी मानसिकता में खुद को ढाल ले जिससे तेरा खामोश रहना भी भलाई का कारण बन जाए। संतजनों के इन वचनों को अपनाने से ही इंसान का जीवन संवरता है। चाहे सतयुग हो, त्रेता हो या द्वापर हो, हर युग में पीर-पैगम्बरों ने इसी ओर अग्रसर किया कि परमात्मा को जानो, मानो और फिर एक हो जाओ। इस तरह से एकता के एक सूत्र में बंध जाओ।संतजनों की हमेशा यही इच्छा होती है कि नेकियां ही नेकियां सबके जीवन में देखने को मिलें । इसी इच्छा की पूर्ति के लिए वह निरंतर अपना योगदान देते हैंऔर इंसान को भी यह समझाते हैं कि हे इंसान! तू अपनी अवस्था ऊंची कर ले, दृष्टि व्यापक कर ले, संकीर्णताओं से ऊपर उठ जा, अहंकार को त्याग दे, दूसरों को नीचा मानना छोड़ दे और अपने और पराए में फर्क करने वाला पैमाना छोड कर ही समदृष्टि वाला पैमाना अपना ले।



भक्तजन इस मालिक खालिक से नाता जोड़कर यह अहसास करते हैं कि हे परमात्मा, अगर : तुम जीवन में हो तो बसंत है, अगर तुम नहीं हो तो बस अंत है यानि परमात्मा का बोध है तो जीवन में बसंत ऋतु के समान बहार ही बहार है, अगर परमात्मा का बोध । नहीं है तो जीवन भी जीवन नहीं है। हे प्रभु, जीवन में बसंत तुम्हारे कारण छोड कर ही है, तुमसे नाता जोड़ने के कारण ही है। । आज इंसान अपने अमूल्य जीवन की कद्र नहीं करता, वह अपनी कीमत खुद ही कौड़ी डाल लेता है क्योंकि वह न प्यार की कद्र करता है, न मासूम जानों की कद्र करता है और न ही मिलवर्तन की कद्र करता है। सबको अपने जीवन की कद्र करनी आ जाए, सभी सुंदर भावों से युक्त होकर जीवन व्यतीत करें, यही प्रार्थना है। जहां संसार में अपनी गर्ज की पूर्ति के लिए लगन और तन्मयता देखने को मिलती है, वहीं भक्तों के हृदय में गिरती हुई मानवता को उभारने की लगन होती है। वह ऐसा सुखद वातावरण स्थापित करने के लिए हमेशा उत्साहित रहते हैं जिसमें सभी इंसान राहत की सांस ले सकें। दातार ऐसी शक्ति सबको प्रदान करे ताकि सभी इस निराकार परमात्मा को अंग-संग जानें और सृष्टि के इस रचनाकार को जीवन को आधार बनाएं। केवल और केवल यही है जो सर्वव्यापी है, जो कण-कण में व्याप्त है, ऐसा सत्य जो पहले भी था, आज भी है। और आगे भी रहेगा, ऐसा सत्य जो किसी स्थान के साथ बंधा हुआ नहीं है। सृष्टि में फेरबदल होती रहती है लेकिन एक यह परम् अस्तित्व ही है जो इस बदलाव के दायरे में नहीं आता। भक्तजन हर वक्त इस सत्य को जीवन में अहमियत देते हैं। वह यही फरमाते हैं कि हे इन्सान, तु शरीर की जरूरतों की पूर्ति के लिए जागरूक है लेकिन तेरे जीवन में जो सत्य का अभाव है, इस कमी को भी पूरा कर ले। इस कमी। को पूरा करने से ही तेरे जीवन का म्यार ऊंचा होगा।