मन में प्रेम उत्पन्न नहीं हुआ तो फिर जीवन निरर्थक हो जाता है


भक्त प्रह्लाद ने परमात्मा को महत्ता दी जिससे वह हमेशा के लिए एक रोशन सितारा बन गया। अगर मन का नाता परमात्मा से नहीं जुड़ा, मन में प्रेम उत्पन्न नहीं हुआ तो फिर जीवन निरर्थक हो जाता है, इन्सान अंधकार और पतन के मार्ग पर चलने लगता है। आज इन्सान छल-कपट कर, भाईयों का कत्ल कर, यहां तक कि पिता को मौत के घाट उतार कर महल इकट्टे करता है, जायदादें बनाता है लेकिन यह लाभ का सौदा नहीं है। इस हरि के रंग में रंगे बगैर, इसे भूल कर जो इंसान जीवन का सफर तय करता है, जो भोगों का आनन्द लेता है, वह अपना लोक भी गंवाता है, परलोक भी गंवाता है। इसलिए संतजन हमें चेतन करते हैं कि हम भी कहीं आंखें मूंद कर ही तो नहीं चलते जा रहे। क्या हम भी अज्ञानता में ही विचरण तो नहीं कर रहे हैं? क्या हमने अपनी मंजिल को प्राप्त किया हैया नहीं ?उन्होंने संसार को यही पैगाम दिया सुचि सुबंधु कि हमने घाटे का सौदा नहीं करना है। हमने ऐसा सौदा करना है जिससे लोक और परलोक दोनों संवर जाएं लेकिन यह इन्सान पर निर्भर करता है कि उसने उनकी शिक्षाओंको अपनाया या नहीं, अनुकरण किया या हा, अनुकरण किया या नहीं, उसने मन की मति को अपनाया या गुरु की मति को अपनाया। महापुरुष संतजन प्रेरणा देते आ रहे हैंकि हमने वास्तविकता को समझकर सत्य का बोध हासिल करना है। सत्य यही एक परम आत्मा है, इसकी भक्ति करने से ही जीवन में शोभा प्राप्त होती है। फिर इन्सान नहीं भरत इसी सत्य को घट-घट में समाया देखकर हर किसी के प्रति मन में सद्भाव रखते हुए संसार की यात्रा तय करता है। इस निर्मल के साथ नाता जोड़कर उसके मन को निर्मलता मिलती है, ठहराव मिलता है। तभी वास्तविकता में उसके जीवन में क्रांति घटित होती है, उसके जीवन का सफर मुबारक होता है, तभी वह चारों तरफ प्रेम बांटता है, नफरत को त्याग कर प्यार रूपी जहां में विचरण करता है। दातार कृपा करे, संसार में फैला अंधकार मिटे और इन्सान भ्रमों और भ्रांतियों से उभरकर मानवता की डगर पर चले तभी पतन की ओर जा रही दुनिया का उद्धार संभव होगा। शरीरके लिए खुराक हम लेते हैं। शरीर को हृष्ट-पुष्ट बनाने के लिए, शरीर में ताकत रहे, शरीर चलता फिरता रहेतो महापुरुषों ने हमेशा आध्यात्मिक खुराक पर भी बल दिया है जो हमारी आध्यात्मिकता को मजबूत करती है यानि कि हमारे जीवन में आध्यात्मिक पहलू मजबूत होता है