महापुरुषों, संतों, गुरु-पीर-पैगम्बरों की समदृष्टि रही है


जब तक यह नजर नहीं मिलती, तब तक जागृति नहीं आती और इंसान के मन में वही संकीर्णता, वही तंगदिली बनी रहती है। यह अपना, वह पराया, मैं ऊंचा, यह नीचा, मेरा मजहब ऊंचा, उसका नीचा, मेरा पैगम्बर ऊंचा, उसका नीचा, वहऐसे छोटे दायरों में बंध जाता है संस्कृतियों के लिहाज से, प्रांतों के लिहाज से, इसकी वही संकीर्ण सोच बन जाती है। फिर वह वैर, ईष्र्या और नफरत की आग में जलते हुए दूसरों पर जुल्म ढाता है, वातावरण को दूषित करता है और चारों तरफ मातम फैलाता है। इससे धर्म तो बदनाम होता ही है, मानव जाति भी कलंकित होती है। महापुरुषों, संतों, गुरु-पीर-पैगम्बरों की समदृष्टि रही है। इसीलिए'सबका भला करो भगवान, सबका सब विधि हो। कल्याण' जैसी प्रार्थनाओं का सृजन हुआ। जब 'सब' शब्द का इस्तेमाल होता है तो औरत है या मर्द है, काले रंग का है या गोरे रंग का है, पगड़ी वाला है या टोपी। वाला है, चाहे किसी संस्कृति का हो, चाहे कोई भी भाषा बोलता हो, हर कोई उस ‘सब' के दायरे में आ जाता है। दातार कृपा करे, सबको ऐसी जागृति प्रदान करे ताकि सभी जहां अपनी आत्मा का कल्याण करें, वहीं इस जीवन के सफर को एकत्व के भाब से युक्त होकर तय करते चले जाएं। सभी इंसान मालिक की पहचान कर सही मायने में भक्ति के रंग में रंग जाएं, जाति-पाति के बंधन से ऊपर उठकर परमात्मा के साथ नाता जोड़ें और नफरत, घृणा, वैर जैसी भावनाओं को प्रबल न होने दें। इंसान का जीवन कुछ वर्षों के दायरे में बंधा है। कोई पचास वर्ष जी लेता है, कोई सत्तर वर्ष, कोई सौ-सवा सौ वर्ष । जी लेता है लेकिन उसके आगे नहीं जा पाता है।



उम्र के साथ-साथ हुकूमतें, दौलतें . और शोहरत सभी दायरे में बंधे हैं, और तो और चेहरों की खूबसूरतियां भी दायरे । में बंधी हैं। जो चेहरा आज खूबसूरत दिखता है, उम्र के बढ़ने के साथ उसी खूबसूरत चेहरे पर झुर्रियां आ जाती हैं। दूसरी ओर परमात्मा सभी दायरों से बाहर है, यह अजन्मा है, यह मिटने वाला नहीं, यह काल के अधीन नहीं, यह स्थान से बंधा नहीं, ऐसे परमतत्व की अंश आत्मा अगर अपने मूल की पहचान कर लेती हैतो फिर यही दर्जा इसको भी प्राप्त हो जाता है। इसीलिए संतजन जागरूक करते हैं कि हे इंसान, तेरे श्वांसों का कोई भरोसा नहीं है। जिस प्रकार एक घड़े को ठोकर लगने पर उसमें रखा पानी बिखर जाता है, उसी प्रकार तेरे जीवन का सिलसिला पानी के > बुलबुले के समान पल में समाप्त हो जाता है। इसलिए काल के आने से पहले तू मंजिल को पा ले। युगों-युगों से यही विधान रहा है कि शरीर तो सबका ही चला जाता है। इस ओर गौर कर, तुझे हीरे जैसा जन्म मिला है, यह अवसर हाथों से मत जाने दे, इस जन्म का पूरा-पूरा लाभ उठा ले। अगर सत्य परमात्मा को जीवन में अहमियत नहीं दी, इससे नाता नहीं जोड़ा तो फिर तेरा जीवन कौड़ियों के भाव चला जाएगा। लेकिन इंसान अंधकार ढोते-ढोते अपना अमूल्य जीवन गंवा कर इस संसार से रुखसत हो जाता है।


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