अनेकता में एकता का भाव अगर हम रख लें


इसी का आधार लेने से इंसान का दर्जा ऊंचा हो जाता है। आत्मा का कल्याण इसी के कारण है, मन की शुद्धता इसी के कारण है। और तो और, सद्भाव, पावनता, निर्मलता, विशालता और सद्व्यवहार जैसे सद्गुण भी इसी से नाता जोड़ने के कारण ही इंसान के जीवन में प्रवेश करते हैं। युगों-युगों से इस ओर इंसान का ध्यान दिलाया जा रहा है लेकिन घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों में उलझे इंसान का ध्यान इस ओर नहीं जाता है। वह अपनी दौलत, ताकत, विद्या और खूबसूरती का अभिमान करता है। इस नशे में चूर होकर वह अपने होश खो बैठता है और क्या से क्या कर गुजरता है। वह ऐशो-आराम में परमात्मा को भूल जाताहै और तैश में आकर उसे खुदा का खौफ भी नहीं रहता। अज्ञानता के कारण वह जाति-पाति के बंधनों में फंसकर दूसरों से नफरत करता है। दूसरी तरफ जो । जागरूक होकर इस ईश्वर के साथ जुड़ जाते हैं, इस सत्य को अंग-संग जानकर इसका अहसास करते हैं, मानवीय मूल्यों से युक्त हो जाते हैं, उनका उद्धार हो जाता है। सत्य का बोध हासिल करने के बाद वे संतजन फरमाते हैं कि हे परमात्मा, तू ही है जो जल भी है, थल भी है, सब जगह तेरा ही पसारा है, मेरा कोई वजूद नहीं है। यह बोध होने पर वे अहंकार से भी बच जाते हैं। असल में अहंकार ही दूरियां पैदा करके घृणा और नफरत की आग में इंसान को झुलसाता है। संतजन उस अवस्था को प्राप्त कर लेते हैं जिस अवस्था में वे हर घट में प्रभु का दीदार करते हैं, उनके हृदय में केवल प्रेम । रह जाता है, केवल दूसरे के काम आने की भावना रह जाती है, दूसरे की सेवा । करने की भावना रह जाती है। वे यही प्रार्थना करते हैं कि हे प्रभु, कृपा करो कि सारे संसार का भला हो, वातावरण सुंदर बने, प्रेम और करुणा का भाव मजबूत हो, नफरत-वैर-ईष्र्या दूर हो, हम संकीर्णता से ऊपर उठे और इस प्रकार सारी धरती ही गुलजार बन जाये। जिन तालाब में कंकड़ कितना होगा? उसको हम तालाब में फैकते हैं तो उसका असर एक सेंटीमीटर जितना उसका साइज है उतना ही नहीं होता है, उसके चारों तरफ गोलाई में लहरें जाती हैं, वो बाहर की तरफ होती जाती हैं। केवल और केवल एक सेंटीमीटर ही तो कंकड़ फैका था, तो फिर एक सेंटीमीटर ही असर होना चाहिये था। लेकिन वो पानी की लहरें चारों तरफ गोलाकार में और फैलती चली जाती हैं। इसीलिये आज हम उस आत्म लेवल पर नहीं टिके हुए हैं। हम उस लेवल पर टिके हुए हैं जहां पर टोपी और पगड़ी के ऊपर सवाल है, जहां पर सिर के बाल रखने हैंया मुंडवाने हैं ये सवाल है, जहां पर केवल भाषाओं के सवाल हैं, जहां पर केवल कौमों के सवाल हैं, इससे बाहर हम निकल नहीं पा रहे हैं, इसीलिये एक-दसरे को बर्दाश्त भी नहीं किया जाता है, लेकिन महापुरुष संतजनों ने यही समझाया है कि ‘अनेकता में एकता का भाव अगर हम रख लें।