नई दिल्ली, महात्मा गांधी ने चंपारण पहुंचने के बाद कृपलानी जी से पूछा कि चंपारण आपके पड़ोस में है, लेकिन आप इसके सुख दुःख के बारे में क्या जानते हैं? एक नए राष्ट्रवाद की, एक मानवीय राष्ट्रवाद की, एक समतालक्षीय जद्दोजहद की जो दीक्षा थी, वह कृपलानी के जीवन और सोच का निर्णायक मोड़ था। यह बात जाने माने गांधीवादी एवं जनसत्ता (गुजराती) के पूर्व वरिष्ठ संपादक प्रकाश भाई शाह ने आचार्य कृपलानी स्मृति व्याख्यान के दौरान कही।
आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा आयोजित आज के दौर में आचार्य कृपलानी विषयक व्याख्यान में उन्होंने कहा कि राष्ट्रभक्ति का एक मानवीय स्वरूप, जो गांधी की बड़ी देन है, कृपलानी के मंथन और निर्णायक मोड़ से समझ में आती है। यह आज के दौर में अहम महत्व रखती है। उन्होंने अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कृपलानी की भूमिका का पूरा लाभ न तो देश की राजनीति ने लिया और न ही देश के सर्वोदय समाज ने।
प्रकाश भाई शाह ने बताया कि कृपलानी के बारे में गांधी की दो धारणाएं स्पष्ट थीं। एक तो यह कि इसको जो सही लगेगा, वही करना शुरू कर देगा और लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे, इसकी परवाह नहीं करेगा। दूसरी बात यह थी कि कृपलानी में गरीबों के प्रति सच्चा प्रेम और सरोकार था।
कृपलानी जी के साथ अपने बीते हुए क्षणों को याद करते हुए प्रकाश भाई ने बताया कि कृपलानी जी को लोग पोलिटिकल सफरर कहा करते थे और कृपलानी जी बार-बार कहते थे कि अरे भाई, हमने जिसमें जीवन का आनंद देखा, जिंदगी की सार्थकता और उल्लास पाया तो फिर हम सफरर कैसे? यह कृपलानी के व्यक्तित्व की विशेषता थी।
प्रकाश भाई शाह ने आगे बताया कि नेहरू व कृपलानी कुछ दिनों तक गहरे दोस्त थे। जब कृपलानी ने शादी करने का निर्णय लिया तो सुचेता जी से डेढ़-दो साल रुकने को कहा क्योंकि पं. नेहरू तब जेल में थे। कृपलानी जी का कहना था कि मैं अपनी शादी में उनकी उपस्थिति चाहता हूं। कृपलानी जी ने 1934 के बाद पं. जवाहरलाल नेहरू को एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया था, देखो एक बात समझ लो, देश में अभी और लड़ाई लड़नी होगी और लड़ाई लड़ने का दम किसी एक नेतृत्व या व्यक्ति में है तो वह गांधी में है। इसलिए हम समाजवाद की चर्चा को इतनी दूर तक न खींचें कि जिस नेतृत्व से हमें सफलता मिल सकती है उससे किनारा कर लें। हमारा कोई इतिहास पुरुष है तो गांधी है। हमें उसके साथ रहना होगा।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष एवं आचार्य कृपलानी के जीवनी लेखक वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री राम बहादुर राय ने कहा कि राजनीतिक गांधी को यदि किसी ने समझा तो वह कृपलानी थे। कृपलानी जी की इस समझ को आज आगे बढ़ाने की जरूरत है।
स्मृति व्याख्यान के दौरान एनसीइआरटी के पूर्व निदेशक जेएस राजपूत, वरिष्ठ लेखक एवं पत्रकार आरविंद मोहन, अवधेश कुमार, इला कुमार, एस एन शर्मा, शिवेश गर्ग, डॉ. राजीव रंजन गिरी, रामाशीष राय, क्रांति प्रकाश, मनोज झा, रौशन शर्मा, सुभाष गौतम जैसे ढेर सारे बुद्धिजीवी मौजूद थे। व्याख्यान के आरंभ में प्रोफेसर आनंद कुमार ने मुख्य अतिथि का स्वागत किया। आचार्य कृपलानी मेमोरियल ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अभय प्रताप ने कार्यक्रम का संचालन किया।