शिक्षा की स्थिती पर श्वेत पत्र जारी करें मुख्यमंत्री केजरीवाल: विजेन्द्र गुप्ता


नई दिल्ली दिल्ली विधानसभा में विपक्ष के नेता विजेन्द्र गुप्ता ने मंगलवार को भाजपा प्रदेश मुख्यालय में आयोजित संवाददाता सम्मेलन में आम आदमी पार्टी सरकार से शिक्षा की स्थिति पर श्वेत पत्र जारी करने की मांग करते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से पूछा कि अब जब सेकेन्ड्री और सीनियर सेकेन्ड्री की परिक्षायें सिर पर हैं तो वह बताये कि उसने उन लाखों विद्यार्थियों के बारे में क्या किया जिनको उसने फेल होने के कारण स्कूलों से बाहर निकाल दिया। उन्होंने पूछा कि जब वर्ष 2015-16, 2016-17 तथा 2017-18 में नवीं व ग्यारहवीं कक्षाओं में पढ़ रहे 5.16 लाख विद्यार्थी प्रिबोर्ड की परीक्षा में फेल हो गए और उनमें से अधिकांश का पुनः दाखिला नहीं दिया तब वह शिक्षा में स्तर सुधारने का दावा किस प्रकार कर रही है?


उन्होंने कहा कि सरकार के दावों और जमीन पर स्थिती में भारी अंतर है। उन्होंने कहा कि सरकार वास्तव में अपने स्कूलों के परिणाम बेहतर दिखाने के लिए कमजोर छात्रों को निरन्तर अपने स्कूलों से निकाल रही है। उन्होंने कहा कि इससे सरकार की बुनियाद योजना की पोल खुल गई है। सरकार ने अपने ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों से सर्वे कराकर इसकी सफलता का गुणगान किया। उन्होंने कहा कि यह एक गंभीर मामला है और इसकी गहन जांच की आवश्यकता है कि क्या कोई सरकार अपने परिणाम सुधारने के लिए असफल विद्यार्थियों को पुनः दाखिला देने से मना कर सकती है। पत्रकार सम्मेलन में भाजपा दिल्ली प्रदेश के उपाध्यक्ष अभय वर्मा, प्रवक्ता अशोक गोयल तथा बुद्धिजीवी प्रकोष्ट के अध्यक्ष अमित खड़खड़ी उपस्थित थे।


नेता विपक्ष ने कहा कि सरकार ने हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय में दाखिल एक शपथ-पत्र में स्वीकार किया कि 2018-19 में नवीं से बारहवीं कक्षा तक के 66 प्रतिशत असफल विद्यार्थियों को अपने विद्यालय में उन्हें दाखिला देने से मना कर दिया और जब अध्यापकों के लगभग 25 हजार पद खाली पड़े हैं ऐसे में वह किन विद्यार्थियों के लिए बिना किसी सोच-विचार के धड़ल्ले से़ 20, 748 कमरों का निर्माण करने जा रही है। उसने 500 नए स्कूल खोलने के बाद भी 4 वर्षों में एक भी नया स्कूल क्यों नहीं खोला? उन्होंने कहा कि विद्यमान स्कूलों में नए कमरों का निर्माण निश्चित रूप से दूर-दराज के उन क्षेत्रों तक शिक्षा नहीं पहुंचा सकते जो अभी भी शिक्षा से वंचित हैं।


उन्होंने कहा कि 8 हजार कमरों पर लगभग 1400 करोड़ रूपए व्यय हो चुके हैं। इस प्रकार एक कमरे के निर्माण पर लगभग 17.50 लाख रूपए का व्यय आता है। इसके अतिरिक्त कमरे के फर्नीचर इत्यादि पर लगभग 2.50 लाख रूपए व्यय होते हैं। इस प्रकार एक कमरे पर 20 लाख रूपए खर्च होते हैं। सरकार को इस बात का स्पष्टीकरण देना होगा कि आखिरकार वह किस सर्वे के आधार पर स्कूलों में कमरे पर कमरे बनाए जा रही है। अध्यापकों की कमी और विद्यार्थियों की गिरती संख्या के बीच इस प्रकार नये कमरे बनाए जाने का क्या औचित्य है? उन्होंने उपराज्यपाल अनिल बैजल से मांग करी कि वह आम आदमी पार्टी सरकार को आदेश दें कि वह नए कमरे बनाने का काम शुरू करने से पहले दिल्ली में शिक्षा की स्थिती पर विस्तृत रूप से श्वेत पत्र जारी करें।


विपक्ष के नेता ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में जिस प्रकार मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल और उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं, उसके परिणाम जमीनी स्तर पर कहीं नजर नहीं आते। सरकार ने आज भी अध्यापकों के 25 हजार पद खाली पड़े हैं। लगभग 650 विद्यालयों में प्रधानाचार्य के पद खाली पड़े हैं। सरकार मैनेजर नियुक्त कर प्रधानाचार्यों की भरपाई नहीं कर सकती। स्कूल प्रबंधन में इस प्रकार की भारी कमी के बावजूद भी सरकारी आंकड़ों को अनुसार 1 जनवरी, 2019 को शिक्षा निदेशालय ने 90 प्रिंसिपलों और 32 वाइस प्रिंसिपलों को डायवर्टीड कैपेसिटी में प्रशासनिक कार्यों में लगा रखा है। इससे शिक्षा के स्तर पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है।


विपक्ष के नेता ने कहा कि जिस प्रकार केजरीवाल सरकार असफल छात्रों को पुनः दाखिला नहीं देती है, उससे सरकार का असफल छात्रों के प्रति अन्यायपूर्ण रवैया दिखाई देता है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2018-19 में दिल्ली सरकार के स्कूलों में बारहवीं में असफल छात्रों में 91 प्रतिशत को दाखिला ही नहीं दिया गया। ग्यारहवीं कक्षा में 58 प्रतिशत, दसवीं में 91 प्रतिशत तथा नवीं में 52 प्रतिशत असफल विद्यार्थियों को पुनः दाखिला देने से इन्कार कर दिया गया। इस प्रकार सरकार ने नवीं से ग्यारहवीं तक 1, 55, 436 असफल विद्यार्थियों में से 1, 02, 854 विद्यार्थियों को पुनः दाखिला नहीं दिया। एक सर्वे के अनुसार नवीं कक्षा से बाहरवीं कक्षा तक पहुंचते-पहुंचते मात्र 35 प्रतिशत विद्यार्थी ही रह जाते हैं। ऐसे में सरकार को यह बताना होगा कि वह किन बच्चों के लिए नये कमरे बना रही है और क्यों?


विपक्ष के नेता विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि केजरीवाल ने अपने चुनावी घोषणापत्र में 500 नये स्कूल खोलने का वायदा किया था परंतु दुर्भाग्य है कि चार वर्ष के कार्यकाल में एक भी नया स्कूल नहीं खोल पाये। यहां तक कि वे गत् 4 वर्षों से दिल्ली सरकार के पास स्कूल खोलने के लिये 29 प्लाटों पर एक ईंट नहीं नहीं लगवा पाये। आज वे यह कहकर जनता को गुमराह नहीं कर सकते कि उन्होंने जितने क्लासरूम बनवाये हैं वे 1000 स्कूलों के बराबर हैं। परंतु जनता जानती है कि नये स्कूल खोलने का उद्देश्य यह होता है कि ऐसी जगह शिक्षा के मंदिरों का निर्माण किया जाये जहां अभी भी मीलों दूर तक कोई भी स्कूल नहीं है। दिल्ली में आज भी हजारों ऐसी कालोनियां हैं जहां मीलों दूर तक कोई स्कूल नहीं है और वहां रहने वाले बच्चे शिक्षा की पहुंच से बाहर हैं। उन्होंने पूछा कि शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत क्या यह बाध्य नहीं है कि किसी भी बच्चे को 1-3 किलोमीटर के दायरे से बाहर नहीं जाना पड़े। क्या वे कह सकते हैं कि उन्होंने हर गरीब बच्चे को शिक्षा पहुंचाने के लिये उसके घर के समीप स्कूल बनाया है?


विजेन्द्र गुप्ता ने कहा कि नये क्लासरूम बनाने के पीछे सरकार की दलील है कि इससे क्लासों में बच्चों की भीड़भाड़ (घनत्व) कम हो जायेगा। यदि सरकार की दलील मान भी ली जाये तो क्या नये क्लासरूमों के लिये अध्यापक या नया स्टाफ उपलब्ध है? अध्यापकों तथा प्रिंसिपलों की पहले से ही भारी कमी चल रही है तो ऐसे में नये क्लासरूम बनाने का औाचित्य क्या है?