सीबीआई द्वारा नियमित निदेशक नियुक्त नहीं किए जाने पर एससी ने जताई निराशा


नई दिल्ली, उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को केन्द्र से पूछा कि उसने सीबीआई का स्थायी निदेशक नियुक्त क्यों नहीं किया है। साथ ही न्यायालय ने टिप्पणी की कि वह लंबे समय तक एजेंसी के लिए अंतरिम प्रमुख की नियुक्ति के विरुद्ध है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने कहा कि सीबीआई निदेशक का पद संवेदनशील है और सरकार को अब तक इस पद पर स्थायी निदेशक की नियुक्ति कर देनी चाहिए थी। अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ को बताया कि सीबीआई के नए निदेशक के चयन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में उच्चाधिकार प्राप्त समिति शुक्रवार को बैठक करेगी।
उन्होंने पीठ को यह भी कहा कि केन्द्र ने आईपीएस अधिकारी एम नागेश्वर राव को अंतरिम सीबीआई निदेशक नियुक्त करने से पहले उच्चाधिकार समिति की मंजूरी ली थी। समिति की शुक्रवार को बैठक के बारे में अटॉर्नी जनरल के कथन के बाद न्यायालय ने मामले की सुनवाई छह फरवरी तक स्थगित कर दी। पीठ नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक नियुक्त करने के सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इस मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा कि जांच ब्यूरो के निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया अब तक पूरी हो जानी चाहिए थी क्योंकि यह पहले से ही मालूम था कि जांच ब्यूरो प्रमुख जनवरी में सेवानिवृत्त हो रहे हैं।
अटार्नी जनरल ने सीलबंद लिफाफे में उच्चाधिकार प्राप्त समिति की बैठक का विवरण पेश किया। इस समिति की 24 जनवरी को बैठक हुयी थी जो अधूरी रह गयी थी। गैर सरकारी संगठन के वकील प्रशांत भूषण ने पीठ से कहा कि न्यायालय को जांच ब्यूरो के निदेशक की नियुक्ति की प्रक्रिया में पारदर्शिता के पहलू पर गौर करना चाहिए। पीठ ने भूषण से कहा, आप तत्काल नियुक्ति चाहते हैं। हमें यहीं रूकना होगा। पहले नियुक्ति होने दीजिये। यदि आपको कोई शिकायत हो कि प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया और इसमें पारदर्शिता नहीं थी तो आप इसे बाद में चुनौती दे सकते हैं।
जांच ब्यूरो के अंतरिम निदेशक के रूप में नागेश्वर राव की नियुक्ति को चुनौती देने वाली इस याचिका पर सुनवाई से तीन न्यायाधीश पहले ही खुद को अलग कर चुके थे। इसके बाद न्यायमूर्ति मिश्रा और न्यायमूर्ति सिन्हा की पीठ का गठन किया गया था। न्यायमूर्ति एन वी रमण ने बृहस्पतिवार को इस मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। इससे पहले, प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति ए के सीकरी ने भी खुद को अलग कर लिया था।