संतजन हर हाल में प्रभु की रजा को मानते हैं,


सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज निरंकारी बाबा हरदेव सिंह


कुछ देर बाद जब एक बेर टूटकर उसकी नाक पर गिरा तो उसे अहसास हुआ कि उसकी सोच कितनी गलत थी। यदि उस पेड़ पर बेर की जगह तरबूज लगा होता और वह उसकी नाक पर गिरता । तो नाक गंभीर रूप से घायल हो जाती ।। कहने का भाव है कि परमात्मा की सृष्टि में सब कुछ ठीक है, हमें केवल अपना देखने का नजरिया सही करना है। संतजन हर हाल में प्रभु की रजा को मानते हैं, निरंकार के भाणे में प्रसन्न रहते हैं। उनका जीवन परोपकार के लिए होता है, वह संसार को प्रभु परमात्मा के प्रति दृढ़ विश्वासी बनने की प्रेरणा देना अपना नैतिक कर्तव्य समझते हैं। वह केवल निरंकार-दातार का ही आसरा लेते हैं, इसके भरोसे सारा जीवन गुजारते हैं, वह किसी और पर आस नहीं रखते। वह नाम रूपी धन प्राप्त कर परमात्मा से जड़े होते हैं, इसलिए उनके मन में संतुष्टि का भाव होता है। हमें भी सदा निरंकार पर ही भरोसा रखना है। हमारा विश्वास दृढ़ होना चाहिए। कि दातार जो करता है, ठीक करता है। हमने निरंकार के भाणे को खुशी-खुशी स्वीकार करना है। सभी से प्यार करना है, सभी का भला मांगना है। दातार कृपा करे, सबको ऐसा ही जीवन जीने का सलीका मिले ताकि सभी शकराने के भाव से जीवन का सफर तय करें और चारों तरफ के वातावरण को भी सुंदर रूप प्रदान करें। पीर--पैगम्बरों ने युगों-युगों से इंसान को अविनाशी परमात्मा के साथ नाता जोड़कर आत्मा का कल्याण करने के लिए संदेश दिया। उन्होंने सत्य परमात्मा की तरफ अग्रसर करते हुए फरमाया कि हे। इंसान, त पारब्रह्म परमात्मा के साथ अपने मन का नाता जोड ले और फिर सारी उम्र । इससे जुड़े रहकर जीवन का सफर तय कर। तब तेरे जीवन में प्रेम की गंगा बहेगी, फिर तू शोषण की बजाय पोषण करने लगेगा, फिर तू एक-दूसरे का सहारा बनेगा : और वाकई ही वसुधैव कुटुम्बकम् के भाव को मजबूती प्राप्त होगी। अगर तू इसका बोध हासिल नहीं करेगा और हर समय संसार को ही विशेषता देकर दिलोदिमाग में बसाए रखेगा तो फिर तेरे जीवन का म्यार ऊंचा नहीं होगा। संतजन उनके वचनों को मानकर, उनसे प्रेरणा लेकर, उनके आदर्शों के अनुसार जीवन ढालकर अपना जीवन निखार लेते हैं। वह संवेदनशील बन जाते हैं, वह मानवमात्र के उद्धार के लिए प्रार्थना भी करते हैं, परोपकार भी करते हैं। वह गांव-गांव, गली-गली जाकर लगन और उत्साह के साथ यह संदेश देते हैं कि संसार के वातावरण को सुंदर बनाने के लिए सुंदर भावनाओं से युक्त होना जरूरी है। वह हमेशा मानवता की चर्चा कर सभी को इस ओर ध्यान देने के लिए प्रेरित करते हैं। आज एक इंसान दूसरे इंसान से जाति और धर्म के आधार पर नफरत करता है। वह जीवन को प्रेमपूर्वक व्यतीत करने की बजाय केवल अभिमान, निंदा और छीना-झपटी तक ही सीमित रहता है। वह समझता है कि अहंकार करने से वह ऊंचे दर्जे वाला बन जाएगा लेकिन यह सच नहीं है।