मानव मात्र को प्यार करना ईश्वरीय इच्छा होगी


हरेक इंसान में यही एक नूर (ब्रह्म तत्व) वास करता है। इसलिए इंसानों वाला जन्म प्राप्त करके कर्म भी इंसानों वाले ही करने चाहिए, लेकिन हो क्या रहा है? आज हम हिंदू कहलवाना चाहते हैं, मुसलमान कहलवाना चाहते हैं, सिखईसाई कहलवाना पसंद करते हैं, लेकिन अपने आप को इंसान नहीं कहलवाना चाहते। किसी से पूछो, आप कौन हैं? जवाब मिलेगा, हिंदू हूं, मुसलमान हूं, कोई भी नहीं कहता कि इंसान हूं। हम स्वयं को अच्छा हिंदू, अच्छा मुसलमान, अच्छा सिख सिद्ध करना चाहते हैं और इसके लिए दूसरे की जान भी लेनी पड़े तो हम हर वक्त तैयार हैं, लेकिन विचार करना है कि पहले हम अच्छे इंसान भी बने हैं या नहीं? अच्छाई हमारे जीवन में आई भी है कि नहीं ? अगर हम अच्छे इंसान नहीं तो हम न अच्छे हिंदू हैं, ने अच्छे ईसाई है, न सच्चे मुसलमान हैं और न पूरे सिख। पहलेअच्छाई आना जरूरी है। यही तो मूल है। बीज जैसा बोया जाता है, फल वैसा ही। मिलता है। यदि हमने कीकर का बीज डाला है तो क्या हम कह सकेंगे कि हमें बड़ा अच्छाआम का फल प्राप्त हो जाएगा। बीज तो कीकर के डाले जा रहे हैं तो कांटे ही निकलने हैं। मूल अगर अच्छा है तो उसके ऊपर जो भी इमारत खड़ी की जाएगी, वह भी खूबसूरत होगी, हमें फल भी अच्छे प्राप्त हो सकते हैं, लेकिन अगर मूल में ही घृणा और नफरत बोई हुई है, दूसरे का नुक्सान । होता देखकर मन में खुशी होती है, तो । अच्छे फलों की आशा अर्थहीन है। किसी। का भी बुरा करने वाला, नफरत, ईर्ष्या । रखने वाला भला महान धर्मात्मा कैसे हो । सकता है? ऐसा करके कौन से धर्म का हम पालन कर रहे हैं? कौन से भक्तों की श्रेणी में हम आ रहे हैं? यह चराचर जगत निराकार परमात्मा की रचना है। जिस प्रकार एक कलाकार कोई कति बनाता है, उसी प्रकार की यह रचना है, मानव परमात्मा की विशेष कति है। कहते हैं, मनुष्य को परमात्मा ने अपने ही रूप में बनाया है। स्वाभाविक है, मानव मात्र को प्यार करना ईश्वरीय इच्छा होगी। सभी संतों-महात्माओं ने भी इंसानों को आपस में प्यार करने का उपदेश दिया है। चाहे महापुरुष सत्युग में हुए, त्रेता में हुए, द्वापर में हुए, कलयुग में हुए, चाहे भगवान रामजी रहे हो, चाहे भगवान कृष्णजी, चाहे हजरत मुहम्मद साहब, चाहे हजरंत ईसा मसीह, चाहे गुरु नानक देवजी महाराज से लेकर श्री गोबिन्द सिंह जी महाराज तक इस संसार में रहे हों, या फिर हम अन्य भक्तों को देखें, संत तुकाराम जी, संत एकनाथजी, या इसी विशाल देश के अनेकों हिस्सों में हुए महापुरुष, साउथ में अगर आंध्रप्रदेश का जिक्र करें तो इस तरफ श्री बौतन्नाजी, वैभन्नाजी ऐसे ही महापुरुष हुए हैं। उड़ीसा की तरफ जाएं, तो वहां पंचसखा कहकर महापुरुष महशूर हैं।