योगी राज में पुलिस मुठभेड़ों की क्या है सच्चाई, सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट


पुलिस एनकाउंटर एक एसा शब्द है जिसे सुनते ही देश के हर व्यक्ति के दिल दिमाग पर एक छवि बनती है इस छवि को वह स्यंम ही बयान कर सकता है हम तो सिर्फ उन शब्दों को यहां दे रहे हैं जो अक्सर कहे और सुने जाते हैं। और वह हैं उसको फर्जी मानने या बताने वाले शब्द। पिछला पूरा वर्ष 2018 ऐसा गुजरा कि कहीं न कहीं से पुलिस एनकाउंटर की खबरें आती रहीं,लेकिन उत्तर प्रदेश के कई मामले एसे आए जहां पुलिस ने एनकाउंटर किया और एक सोची समझी कहानी सुना डाली जो हकीकत के सामने हजम नहीं हो सकी। और अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह गंभीर मामला है. आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश में बीजेपी की योगी सरकार आने के बाद पुलिस ने ताबड़तोड़ एनकाउंटर किए. अब सुप्रीम कोर्ट ने एक जनहित याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है. याचिका में कहा गया कि यूपी में मुठभेड़ों के नाम पर की गई हत्याओं की सीबीआई या एसआईटी जांच की निगरानी कोर्ट करे. भारत के मुख्य न्यायधीश रंजन गोगोई कहते हैं कि यह एक बहुत गंभीर मामला है. जिस पर विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता है. अब इस मामले में अगली सुनवाई 12 फरवरी 2019 को होगी.वहीं इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार का कहना था कि सारे मामलों की मजिस्ट्रेट जांच हो चुकी है और सभी तरह के दिशा-निर्देशो का पालन किया गया है. जो लोग इन मुठभेड़ों में मारे गए हैं उनके खिलाफ कई अपराधिक मामले चल रहे थे. आपको बता दें उत्तर प्रदेश में बीते साल कई ताबड़तोड़ एन्काउंटर हुए हैं जिन पर सवाल भी उठते रहे हैं. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज की याचिका पर राज्य सरकार से दो हफ्ते में जवाब मांगा था. योगी सरकार ने एनकाउंटरों के खिलाफ याचिका को प्रेरित और दुर्भावनापूर्ण बताया.यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल किया था. हलफनामे में कहा गया कि अपराधियों को पीड़ित बनाकर पेश किया गया. अल्पसंख्यकों का एन्काउंटर करने का आरोप गलत है. मुठभेड़ में मारे गए 48 लोगों में से 30 बहुसंख्यक हैं. वहीं याचिकाकर्ता का कहना है कि अभी तक की जानकारी के मुताबिक एक साल में करीब 15 सौ पुलिस मुठभेड़ हो चुकी हैं. जिनमें 58 लोगों की मौत हो गई है. इन मुठभेड़ की कोर्ट की निगरानी या सुप्रीम कोर्ट के रिटायर जज की निगरानी में सीबीआई या एसआइटी से जांच होनी चाहिए. साथ ही पीड़ितों के परिवार वालों को मुआवजा दिया जाना चाहिए. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी मामले की जांच शुरू की है. फिलहाल अब सुप्रीम कोर्ट याचिका पर सुनवाई को सहमत हो गया है. सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल करते हुए योगी सरकार ने बताया कि राज्य में बदमाशों के साथ हुई मुठभेड़ में 4 पुलिसकर्मियों की मौत हुई है. मारे गए बदमाशों में 30 बहुसंख्यक समुदाय के थे. जबकि 18 बदमाश अल्पसंख्यक समुदाय से. सरकार ने कोर्ट को बताया था कि इस दौरान 98,526 अपराधियों ने सरेंडर भी किया है.जबकि 3,19,141 अपराधी गिरफ्तार किए गए. इन मुठभेड़ों के दौरान 319 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं जबकि 409 अपराधी भी जख्मी हुए। योगी सरकार के खिलाफ इन मुठभेड़ों को लेकरअनेक सवाल खड़े किए जाते रहे हैं और नौबत यहां तक आ गयी है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई को स्वीकार करते हुए इसे गंभीर मामला माना और योगी सरकार को नोटिस भेजा है। आपको बता दें कि अलीगढ़ से लेकर लखनऊ तक में पुलिस मुठभेड़ हुई हैं जिनकी खबरें खूब चर्चित रहीं हैं लखनऊ में सिपाही की गोली से एप्पल कंपनी के मैनेजर विवेक तिवारीकी मौत पर मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने योगी सरकार पर निशाना साधते हुए यूपी में कानून व्यवस्था को मजाक बताया था पुलिस पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा था कि पैसे लेकर मुठभेड़ के नाम पर यूपी में हत्याएं हो रहीं हैं. योगी आदित्यनाथ सरकार कानून-व्यवस्था के मोर्चे पर पूरी तरह नाकाम साबित हुई है.योगी न तो प्रदेश में अपराध कम करने में सफल हुए हैं और न ही जनता को सुरक्षा का एहसास करा पाए हैं। बहरहाल मंत्री के बयान ने भी योगी को कटघरे में खड़ा किया था और अब देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट में पुलिस मुठभेड़ की घटनाओं की जांच के लिए दी गई याचिका पर सुनवाई होना तय हुआ है जिससे मुठभेड़ो की सच्चाई सामने आने का मार्ग प्रशस्त हो गया है।