व्यंग्य आलेख - सुनने की क्षमता


डॉ. सुरेन्द्र वर्मा


क्या आपको लगता है, स्त्रियाँ पुरुषों की बात नहीं सुनतीं ? कुछ लोगों का तो यहाँ तक कहना है कि वे न केवल सुनतीं नहीं, बल्कि उन्हें (पुरुषों को) सिर्फ (खरी-खोंटी) सुनाती हैं। और पुरुष “बेचारा” यह सब सुनने के लिए अभिशप्त है। आप माने न माने, मुझे लगता है कि लगभग पचास प्रतिशत लोग इस बात से सहमत होंगे। बल्कि मुझे तो यह भी लगता है कि शेष पचास प्रतिशत लोगों का मत इसके ठीक विपरीत भी हो सकता है। पुरुष ही नहीं , स्त्रियाँ भी “बेचारी” हो सकती हैं। सही बात जानने के लिए यह ज़रूरी है कि इस सम्बन्ध में एक राष्ट्रीय सर्वे कराया जाए ताकि लोग ग़लतफहमी में न रहें और जो भी सच है, सामने आ सके।
मेरा मानना है कि व्यक्ति की सुनने की क्षमता अलग अलग होती है। कुछ की ज्यादह, कुछ की कम। कुछ लोगों की यह क्षमता इतनी ज्यादह होती है आप कितना ही धीमें क्यों न बोलें, वे सुन लेते हैं; बल्कि कभी कभी तो, आपने जो कहा ही नहीं वह भी, वे सुन लेते हैं। (उनके कान बहुत-कुछ कुत्ते की नाक की तरह होते हैं)। वे जब सुन नहीं पाते तो आपने क्या कहा, इसे वे आपके होंठों की हरकत में पढ़ लेते हैं। बहरहाल, आप बच कर नहीं जा सकते। इसके विपरीत, कई ऐसे भी होते हैं कि आप बकते रहें, वे सुनेंगे ही नहीं।
चीन में एक ऐसा मामला सामने आया है जहां एक महिला मर्दों की आवाज़ नहीं सुन पाती। महिला की इस अजीबोगरीब बीमारी (पढ़ें, क्षमता) के कारण वह सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो गई है। दरअसल चीन की यह महिला ने बाकायदा, जान-बूझ कर, किन्हीं आवाजों को न सुनने की क्षमता का विकास कर लिया है। यह एक विरल उदाहरण है। यह वह दशा है जो पुरुषों की आवाज़ सुनने से स्त्रियों को रोकती है। इसमें कान ही कुछ इस प्रकार का बना होता है जो “लो फ्रीक्वैंसी” की आवाज़ नहीं सुन पाता। इस दशा को “रिवर्स-स्लोप हीयरिंग लॉस” कहा गया है। नाम कुछ भी दे लें, ये तो मानना ही पडेगा कि यह स्थिति महिलाओं के लिए बड़ी फायदे की है। जब भी वे आपकी कोई बात नहीं सुनना चाहेंगी, तड़ से कह देंगीं, क्या कहा? मैंने तो सुना ही नहीं !
सुन पाने के कई प्रकार हैं। पहला, ध्यान से सुनना, कान लगाकर सुनना। जिन चीजों में आपकी दिलचस्पी होती है, ज़ाहिर है, उनसे सम्बंधित बात आप ध्यान से सुनते हैं। परन्तु कुछ बातें आप ध्यान से नहीं सुनते। चलते-फिरते सुन लेते हैं। कुछ ऐसी भी बातें होती हैं जो आप सुनकर भी अनसुनी कर देते हैं। कुछ बातों के आप, उनमें यदि कोई निहित अर्थ है, उसे भी सुन लेते हैं। जैसे बरसात में कभी अति-वृष्टि होती है तो कभी अल्प-वृष्टि वैसे ही सुन पाने में भी अति और अल्प की दिलचस्प स्थितियां साफ़-साफ़ देखी जा सकती हैं।
कभी कभी बात उस मोड़ पर आ जाती है कि जब सुनने-सुनाने का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता। सुनना भी बेकार और सुनाना भी बेकार हो जाता है। ऐसे में मौन साध लिया जाता है। यह हर व्यक्ति के लिए (मौनी)-अमावस्या की रात है। बात को लेकर बस चुपचाप बत्ती बुझाकर सो जाइए। इसी में भला है।


हम क्या क्या नहीं सुनते ! हम गीत सुनते हैं, संगीत सुनते हैं। शोर सुनते हैं, शरापा सुनते हैं। किस्से सुनते हैं, कहानी सुनते हैं। कविता सुनते हैं, अतुकांत सुनते हैं, तुकांत सुनते हैं। डांट सुनते हैं फटकार सुनते हैं। स्वर सुनते हैं, वाद्य सुनते हैं। बात होती है तो बात सुनते हैं, कभी बेबात सुनते हैं। सुनने की चाहत होती है तो सुनते हैं, कभी न चाहते हुए भी सुनते हैं। आंखें हैं। उनका काम ही देखना है। इसी तरह कान हैं तो सुनना भी लाज़मी है। सुनते जाइए। बच नहीं सकते। आपको दो अदद कान जो मिले हैं।


पति पत्नी को और पत्नी पति को सुनाती है। मतलब-बेमतलब सुनाती है/सुनाता है। कल मेरा बेटा कह रहा था, पापा आप तो सुनते ही नहीं, कुछ भी नहीं समझते। ठीक कह रहा था। जब छोटा था, पिताजी कहा करते थे, तू सुनता क्यों नहीं ? शादी हुई तो पत्नी ने भी कहना शुरू कर दिया, सुनते क्यों नही हो जी ? मज़े की बात यह है कि अब बेटा भी यही कह रहा है। मैं तो ठहरा, जन्म-जात बहरा। क्या सुनूँ, किसकी सुनूँ ? कितना सुनूँ। किस किस को सुनूँ। कुछ सुनाई नहीं देता। किस किस को याद कीजिए किस किस को रोइए ? किसे सुनिए और किसे सुनाइये। मुबारक हैं वो जो सुनते ही नहीं। न सुनिए न सुनाइये। आराम बड़ी चीज़ है, मुंह ढँक कर सोइए।