विश्व की एकमात्र पाप-नाशिनी है नर्मदा नर्मदा का कंकड़ भी नर्मदेश्वर शिवलिंग बन जाता है। // आत्माराम यादव


समूचे विश्व में जो दिव्य व रहस्यमयी है तो वह नर्मदा। नर्मदा का वर्णन चारों वेदों की व्याख्या में विष्णु के अवतार वेदव्यास जी ने स्कन्द पुराण के रेवाखण्ड में किया है। रामायण और महाभारत में भी नर्मदा का उल्लेख मिलता है। कालिदास ने नर्मदा को सोमप्रभवा कहा है और रघुवंश में भी नर्मदा का उल्लेख मिलता है। मेघदूत में नर्मदा का वर्णन रेवा और नर्मदा दो नामों से किया गया है। नर्मदा विश्व की एकमात्र नदी है जिसकी परिक्रमा की जाती है। पुराणों के अनुसार गंगा में स्नान से जो फल मिलता है, नर्मदा के दर्शन मात्र से ही उस फल की प्राप्ति होती है। नर्मदा एकमात्र ऐसी नदी है जो पूर्व से पश्चिम काबा की ओर बहती है जिससे मुसलमानों के मन में भी नर्मदा को लेकर गहरी आस्था है। कहा जाता है कि भगवान शंकर ने अमरकण्टक के मैकल पर्वत पर 12वर्ष की दिव्य कन्या के रूप में प्रकट की और देवताओं ने इस कन्या का नाम नर्मदा रखा। नर्मदा को शिव से वरदान मिला है कि वह प्रलयकाल में भी विद्यमान रहेंगी और पापों का नाश करेंगी। नर्मदा का हर पत्थर-कंकड शिवलिंग के रूप में बिना प्राणप्रतिष्ठा के पूजित होता है और विश्व के अनेक शिव मंदिरों में इसी नर्मदा के दिव्य पत्थर नर्मदेश्वर शिवलिंग के रूप में विराजमान है। दूसरे शिवलिंगों की प्राणप्रतिष्ठा की जाती है परन्तु नर्मदा से निकलने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग बिना प्राणप्रतिष्ठा के पूजित है। अनेक स्थानों पर उल्लेख मिलता है कि देवता ही नहीं अपितु ऋषिमुनि,भगवान गणेश,कार्तिकेय,राम लक्ष्मण,हनुमान आदि ने नर्मदा के तट पर तपस्या करके सिद्धिया प्राप्त की है।


नर्मदा के प्रणय को लेकर अनेक क्विदंतियॉ है जिनमें राजा मैखल की पुत्री का नाम नर्मदा है और राजा ने अपनी बेटी की शादी के लिये घोषणा की कि जो राजकुमार गुलवकावली का फूल लेकर आयेगा उसके साथ उनकी बेटी नर्मदा का विवाह होगा। सोनभद्र फूल ले आया जिससे नर्मदा का विवाह तय हो गया। नर्मदा तब तक सोनभद्र से नहीं मिली थी। नर्मदा ने अपने दासी जुहिला के हाथ सोनभद्र को सन्देश दिया और जुहिला ने नर्मदा से राजकुमारी के वस्त्र और आभूषण माँगे और खुद पहनकर सोनभ्रद से मिलने पहुँच गयी। सोनभद्र ने जुहिला को राजकुमारी समझ लिया और जुहिला की नीयत डॉबाडोल हो गयी और उसने सोनभद्र का प्रणय स्वीकार कर लिया। काफी समय बीतने के बाद जब जुहिला नहीं पहुँची तब नर्मदा खुद सोनभ्रद से मिलने आ गयी और उसने दोनों को साथ पाकर नाराज होकर उल्टी दिशा में चलना शुरू कर दिया इसके बाद नर्मदा अरब सागर में जा पहुॅची। नर्मदा तभी से क्वारी कन्या के रूप मं विख्यात होकर सभी की पूजनीय बन गयी।



अनेक किवदंतियों व कथाओं में नर्मदा को लेकर कई तरह की बातें की गयी है वहीं एक प्रसंग में उल्लेख मिलता है कि नर्मदा के अवतरण की कथा पुरूरवा से जुड़ी है। स्कन्धपुराण में उल्लेख है कि नर्मदा का पहला अवतरण सतयुग में हुआ तथा दूसरा अवतरण राजा हिरण्यतेजा के तप से हुआ। युधिष्ठिर ने मार्कण्डेय जी से पूछा कि महाराज हिरण्तेजा ने नर्मदा को किस प्रकार पृथ्वी पर उतारा था?तब बताया गया कि चन्दवंश में जम्बूद्वीप अर्थात भारत में हिरण्यतेजा प्रसिद्ध राजा हुये जिन्होंने लाखों गायें,सोना हीरे-जवाहर,घोड़े-हाथी आदि का दान कर अपने पितरों के जलपान देने व उनकी मुक्ति हेतु उदयाचल पर्वत पर भगवान शिव की उपासना की। शिवजी प्रकट हुये किन्तु उन्होंने नर्मदा को पृथ्वी पर उतारने से इंकार कर दिया बाद में राजा की कठोर तपस्या एवं परोपकारी भावना को जानकर वे राजी हो गये और भगवान शंकर के पसीने से नर्मदा की उत्पत्ति हुई और भगवान शंकर ने नर्मदा को उदयाचल पर उतरने के लिये प्रस्तुत किया। नर्मदा अपने उदगम अमरकंटक से भुगुकच्छ (भड़ोच)तक कल-कल का कलरब कर बहते हुये खुद मार्ग तलाशती अरब सागर में समाहित हो गयी। हिन्दुस्थान ही नहीं अपितु विश्व की एकमात्र नदी नर्मदा ही है जिसकी परिक्रमा बड़ी आस्था, लगन और विश्वास के साथ की जाती है और आदिकाल से आत्मभाव से विभोर ऋषिमुनि, तपस्वी ही नहीं अपितु कई राजाओं ने राजपाट त्यागकर माँ नर्मदा के तटों को अपना साधनास्थली बनाकर साधना में लीन रहकर अपना जीवन नर्मदा के तट पर बिताया।



प्रदेश की जीवनदायिनी पुण्य सलिला माँ नर्मदा देश की एकमात्र ऐसी विलक्षण नहीं है जो पश्चिम से काबा की ओर बहती हुई चली जबकि अन्य नदियॉ या तो दक्षिणमुखी है या पूर्व के सागरों में जाकर मिलती है। यही कारण है कि नर्मदा को पश्चिमीवाहिनी गंगा भी कहा जाता है। नर्मदा के काबा की ओर प्रवाहित होने पर कई मुस्लिम शासकों ने नर्मदा के तट पर अपने राजमहल और स्मारक बनाये जिनमें राजा मांडू के पठान और खिलजी राजमहलों के अलावा होशंगाबाद में राजा होशंगशाह का किला भी एक है। नर्मदा के तट पर रहने वाले मुस्लिम समुदाय के लोग घाट पूजन,नर्मदा के नित दर्शन और सिजदा करते आज भी देखे जा सकते है जो धर्मनिरपेक्षता की अनूठी मिसाल है। दूसरी मिसाल के बतौर गुरूनानक देव याद किये जाते है जो मंगलवारा घाट पर एक सप्ताह तक नर्मदा के तट गुरूद्वारे में बिताकर गये है। गुरूनानक देव जी के विषय में माना जाता है कि उन्होंने दे प्रमुख यात्रायें की जिसमें पहली प्रमुख यात्रा उत्तर भारत थि दूसरी यात्रा में वे मध्यप्रदेश पधारे और ग्वालियर, भिण्ड,भोपाल, होशंगाबाद नरसिंहपुर, जबलपुर होते हुये दक्षिण भारत की ओर प्रस्थान किया। होशंगाबाद में उनका 73 वॉ पड़ाव था तब यहॉ हुशंगशाह राजा थे। कहा जाता है कि कीरतपुर पंजाब में गुरूनानक जी द्वारा 1718 में हस्तलिखित पोथी वे यही होशंगाबाद में छोड़ गये है तभी से लोग उस पोथी के दर्शन के लिये जाकर गुरूनानक को याद कर नर्मदातट को एक पुण्यक्षैत्र के रूप में आज भी याद करते है।


आत्माराम यादव