उच्च शिक्षा में समाहित हों भारतीय मूल्य, इंटरनेट की लत से बचें युवा: उपराष्ट्रपति


नई दिल्ली, उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने आज यहां कहा कि अब समय आ गया है कि हम देश में उच्च शिक्षा को लेकर गंभीरता पूर्वक पुनर्विचार करें। इसमें भारतीय मूल्यों, हिन्दुस्तानी संस्कृति, देशीय वातावरण एवं प्राचीन ज्ञान को समाहित करें। इसके लिए जरूरी है कि विश्वविद्यालय परिसर यानी यूनिवर्सिटी कैंपस में केवल शैक्षणिक गतिविधियां ही हों।


वह रविवार को दिल्ली विश्वविद्यालय के पन्नालाल गिरधरलाल दयानंद एंग्लो-वैदिक (पीजीडीएवी) सांध्य महाविद्यालय के हीरक जयंती समारोह को संबोधित कर रहे थे। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हमें अपने विश्वविद्यालय परिसरों को सिर्फ और सिर्फ ज्ञान प्राप्ति के केंद्र के रूप में ही बनाये रखना होगा। इसके लिए वह सूचना तकनीक के उपयोग के समर्थक हैं लेकिन साथ ही हमें ये ध्यान रखना होगा कि इंटरनेट और सोशल मीडिया जैसे साधनों का सकारात्मक एवं लक्ष्य प्राप्ति के लिए उपयोग हो। उन्होंने कहा कि हमारे युवा इसकी लत के शिकार होकर अपनी ऊर्जा व्यर्थ न करें।


वेंकैया नायडू ने कहा कि देश के इतिहास, विरासत, संस्कृति, परंपराओं, मूल्यों और लोकाचार पर जोर देने के साथ शिक्षा प्रणाली को फिर से तैयार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों और अन्य नेताओं द्वारा बलिदान, वीरता और योगदान की कहानियों को हमारी शिक्षा प्रणाली का एक महत्वपूर्ण घटक बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि शिक्षण संस्थानों को शिक्षा और ज्ञान के मंदिर बनना चाहिए।


उन्होंने जोर देकर कहा कि विश्वविद्यालय परिसरों में ऐसे आयोजन नहीं होने चाहिए जो शिक्षा से जुड़े न हों। वेंकैया ने कहा कि छात्रों को अनुशासन और जरूरतमंदों की सेवा करने के लिए सहानुभूति की भावना जागृत करने के लिए स्काउट्स और गाइड्स या एनसीसी जैसे संगठनों में हिस्सेदारी को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। शिक्षा को व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। सीखने और ज्ञान प्राप्त करने के अलावा, छात्रों को योग का अभ्यास करना और खेल गतिविधियों में भाग लेना भी सीखना चाहिए क्योंकि आज की तनाव भरी दुनिया में संतुलन की भावना विकसित करना आवश्यक हो गया है। उन्होंने शैक्षणिक संस्थानों को आध्यात्मिक मूल्यों के साथ ही छात्रों को संस्कारित करने का आह्वान किया।


उपराष्ट्रपति ने छात्रों को ज्ञान, ज्ञान और नैतिक सिद्धांतों के साथ खुद को दुनिया में लाने से पहले खुद को संभालने का आग्रह किया। उन्होंने उन्हें राष्ट्र और दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं के रचनात्मक समाधान प्रदान करने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए भी कहा। उपराष्ट्रपति ने युवाओं को इंटरनेट की लत के प्रति आगाह किया और कहा कि लगातार संपर्क बच्चों के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। उन्होंने बच्चों को प्रौद्योगिकी और इंटरनेट के नुकसान से बचाने के लिए माता-पिता और शिक्षकों का आह्वान किया। इस मौके पर कर्नाटक के पूर्व राज्यपाल टी.एन. चतुर्वेदी और डीयू के कुलपति प्रो योगेश त्यागी भी मौजूद थे। पीजीडीएवी कॉलेज की स्थापना 1958 में हुई थी।