सियासी गलियारे के लिए चुनौती बनता अपराध जगत


दिल्ली के मुख्यमंत्री एवं आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की बेटी को अगवा करने की धमकी मिलना बताता है कि अपराधियों के हौसले किस कदर बुलंद हो चुके हैं। जब एक प्रदेश का मुखिया और उसका परिवार ही सुरक्षित महसूस नहीं कर पा रहा हो तो आमजन की बात कौन कर सकता है। इससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि एक बार फिर हम 18वीं सदी की ओर जा रहे हैं जहां जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत को चरितार्थ करने का रिवाज रहा। संभवतः तब भी इस तरह के अपराध तो नहीं ही होते रहे होंगे कि आला मुकाम पर बैठे लोगों के परिजनों को ही धमकी दी जाए। इससे स्पष्ट है कि जिन अपराधियों को पहले कभी राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता था अब वो राजनीतिक क्षत्रपों को संरक्षण देने का काम कर रहे हैं, इसलिए वो जो चाहते हैं हो जाता है जबकि पीड़ित की कहीं कोई सुनवाई होती हुई दिखाई नहीं देती है। इससे अन्य अपराधियों के भी दिल खुल रहे हैं और वारदातों को अंजाम देने में उन्हें किसी तरह का कोई खौफ भी नहीं रह जाता है। दरअसल खबर यह है कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की बेटी हर्षिता केजरीवाल का अपहरण करने की धमकी दी गई है। यह धमकी मुख्यमंत्री केजरीवाल की ऑफिसियल ई-मेल आईडी पर 9 जनवरी को दी गई। धमकी देने वाले ने मुख्यमंत्री केजरीवाल को संबोधित करते हुए कहा है कि आप अपनी बेटी को बचा सकते हो, तो बचा लो। हम उसे अगवा कर लेंगे। जैसा कि होता आया है इस धमकी के बाद भी पुलिस सक्रिय होती दिखती है, केजरीवाल की बेटी हर्षित की सुरक्षा बढ़ाने का भी कहा जाता है और बताया जाता है कि मामले की जांच करने के लिए मामला दिल्ली पुलिस की साइबर सेल को सौंप दिया गया है। हो सकता है कि जांच में यह सब मजाक निकले और किसी अनजान बच्चे या व्यक्ति को आगे कर दिया जाए। अब चूंकि दिल्ली पुलिस राज्य सरकार के मातहत कार्य तो करती नहीं है अतः उसकी जवाबदेही भी उसके प्रति नहीं ही बनती है। केंद्र सरकार से उसे सीधे दिशा-निर्देश मिलते हैं जिससे वह केजरीवाल सरकार के सवालों को मन माफिक जवाब देने का भी काम करती देखी जाती है। इस बात का दर्द अनेक बार केजरीवाल सरकार के मंत्री और खुद मुख्यमंत्री भी उजागर कर चुके हैं। पिछले दिनों दिल्ली पुलिस को राज्य सरकार के सुपुर्द करने की मांग भी जोर-शोर से की गई थी, लेकिन उस पर केंद्र सरकार ने भी कोई तवज्जोह नहीं दी। इससे समझा जा रहा है कि दिल्ली में अपराध का ग्राफ जो बढ़ रहा है उसके पीछे लचर कानून व्यवस्था ही है, लेकिन इसकी जिम्मेदारी केजरीवाल सरकार पर नहीं थोपी जा सकती है, जबकि केंद्र का कहना होता है कि उसके पास और भी काम हैं और उसके रहते हुए राज्य की कानून व्यवस्था चाक चैबंद है। ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि आखिर एक मुख्यमंत्री की बेटी को जब अगवा करने जैसी गंभीर धमकी मिल सकती है तो दिल्ली की आमजनता अपने आपको सुरक्षित कैसे मान सकती है। यहां दिल्ली से निकल कर जब देश की ओर नजर दौड़ाते हैं तो अधिकांश राज्यों में अपराध बढ़ने का एक कारण लचीली कानून व्यवस्था को ही ठहरा दिया जाता है। चिंता की बात यह है कि महानगरों से लेकर शहरों, कस्बाई नगरों व गांवों में भी अपराध बढ़ रहा है। यह बात राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो भी अपनी रिपोर्ट में दे चुका है, लेकिन सवाल यह है कि क्या हमने कभी अपराधियों पर नकेल कसने जैसे सरकारी दावों को खोखला साबित करने वाली इन रिपोर्टों को गंभीरता से लिया है? हालात इस कदर भयावह हो चले हैं कि अपराधी उम्र का भी लिहाज करते नहीं दिख रहे हैं। यह कहते हुए कलेजा हलक को आ जाता है कि मासूम बच्चियों और बच्चों के साथ भी अपराधी जघन्य अपराध करने से गुरेज नहीं कर रहे हैं। बूढ़े और लाचार महिला-पुरुष भी इनकी जद में कुछ इस कदर आते दिखते हैं कि चीत्कार निकल जाती है। गांव और छोटे कस्बों समेत वे शहर जो अपनी संस्कृति और अदब के लिए कभी जाने जाते थे, वहां भी लूट, डकैती, अपहरण, हत्याएं, यौन-दुराचार जैसे संगीन अपराधों में इजाफा होना बताता है कि वाकई स्थिति चिंतनीय हो चली है। इस पर विचारक कह सकते हैं कि अपराध का ग्राफ बढ़ने के पीछे बहुत हद तक आधुनिकता और विकासशीलता जिम्मेदार रही है, जिसने अंधाधुंध तरीके से पश्चिमी कुसंस्कृति को अपनाया और आपसी संबंधों व रिश्तों को तिलांजली देते हुए भौतिक सुख-सुविधाओं को जुटाने में लगे रहे। इसने समाज में निर्दयीता और एक-दूसरे के प्रति आत्मसम्मान व अपनापन खो दिया। इससे अपराध पनपा और अब चारों ओर उसी का बोलबाला नजर आता है। इसमें शक नहीं कि विकास के नाम पर देश को पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों व निगमों के हवाले करने से रोका जाना चाहिए, क्योंकि इससे भी समाज में विभिन्न तरह की बुराइयां व्याप्त होती गई हैं। दरअसल विकास के नाम पर जिस आजादी का परचम लहराने की बात की जाती है उससे उद्दंडता, अश्लीलता और धोखा व फरेब जैसी सामाजिक बुराइयों को पनाह मिलती चली जाती है और यही बड़े अपराधों की पहली सीढ़ी होती है। इसलिए कहना पड़ता है कि विकास होना चाहिए, लेकिन अपनी संस्कृति और सभ्यता को मिटाकर इसे कतई नहीं ओढ़ा जाना चाहिए। जहां तक अपराधियों के हौसले बुलंद होने का सवाल है तो सबसे पहले राजनीतिक गलियारे में सफाई करने की आवश्यकता है। राजनीति में जिस तरह से पिछले कुछ सालों में अपराधियों का बोलवाला हो गया है, उससे भी अपराध और अपराधी तेजी से पनपे हैं। इसके लिए कानून अपना काम तो कर ही रहा है और आगे भी करता रहेगा, लेकिन जनजाग्रति की महती आवश्यकता है। चुनाव के दौरान मतदाता को भी एक चलनी लेकर चलना होगा, जिसमें अपराधियों को छानकर अलग किया जा सके और अच्छे, पढ़े-लिखे समाजसेवी व समाजसुधारकों को राजनीति में प्रवेश दिलाया जा सके। अंततः अपराध का बढ़ता ग्राफ कानून-व्यवस्था के लिए तो गंभीर खतरा पैदा करता ही है, साथ ही लोकतंत्र के लिए भी अब चुनौती बनता दिख रहा है, जिस पर समय रहते यदि ठोस पहल नहीं की गई तो यह देश के लिए गंभीर खतरा खड़ा कर देगा।


-डॉ हिदायत अहमद खान-