सीलिंग के खिलाफ व्यापारियों का जोरदार प्रदर्शन


नई दिल्ली, दिल्ली में दुकानों की लगातार हो रही सीलिंग को अपने विरोध का एक बड़ा मुद्दा बनाते हुए दिल्ली के सैकड़ों व्यापारियों ने आज जंतर मंतर पर कॉन्फेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) द्वारा आयोजित एक धरने में मॉनिटरिंग कमेटी की कटु आलोचना करते हुए कहा कि मॉनिटरिंग कमेटी के अलोकतांत्रिक एवं अड़ियल रवैय्ये के कारण दिल्ली में चारों तरफ सीलिंग का कहर है और सही होने के बावजूद भी अभी तक एक भी व्यापारिक प्रतिष्ठान की सील खुली नहीं है। देश की राजधानी दिल्ली में लाखों लोगों के सामने रोजी रोटी का एक बड़ा संकट खड़ा हो गया है क्योंकि पिछले एक वर्ष से दिल्ली में हजारों दुकाने सील होने के कारण बंद पड़ी है।


कैट ने सरकार से मांग की है की दिल्ली में सीलिंग को रोकने के अब ठोस कदम उठाये जाएँ और सरकार या तो संसद के चालू सत्र में इस मुद्दे पर बिल लाये अथवा संसद सत्र के तुरंत बाद एक अध्यादेश लाये जिसमें एक कट ऑफ डेट घोषित की जाए और उस कट ऑफ डेट तक दिल्ली में जो भी स्तिथि थी उसे बरकरार रखा जाए। बिल अथवा अध्यादेश में सीलिंग से बंद हुई दुकानों की सील भी तुरंत खोली जाने का प्रावधान हो। कैट ने सरकार से यह भी मांग की है की मॉनिटरिंग कमेटी के तानाशाही रवैय्ये को देखते हुए सरकार सुप्रीम कोर्ट से मॉनिटरिंग कमेटी को भंग करने की मांग करे।


धरने में शामिल व्यापारियों ने सीलिंग और मॉनिटरिंग कमेटी के खिलाफ अपने गुस्से का इजहार करते हुए जोरदार नारे लगाए और मॉनिटरिंग कमेटी के एक पुतले का दहन भी किया। दिल्ली में लगभग 7 लाख व्यापारी है जो लगभग 25 लाख लोगों को रोजगार देते हैं, इस मायने में सेसलिंग दिल्ली के व्यापारियों के लिए किसी भी दानव से कम नहीं है।


कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीन खंडेलवाल ने बताया कि दिल्ली में सीलिंग व्यापारियों एवं उनके कर्मचारियों की रोजी रोटी से जुड़ा होने के कारण बड़ा मुद्दा हैं। दिसम्बर 2017 से लेकर अब तक गत एक वर्ष में दिल्ली में हजारों दुकाने सील हो गई हैं जिनकी कोई सुनवाई नहीं है वहीँ दूसरी ओर अन्य हजारों दुकानों पर सीलिंग की तलवार लटकी हुई है लेकिन सीलिंग का डर ज्यों का त्यों बना हुआ है सुप्रीम कोर्ट में मामला एक लम्बे समय से चल रहा है और कोई फैसला नहीं हो रहा है जबकि तारीख पर तारीख पड़ रही है। कोर्ट में व्यापारियों का पक्ष रखा ही नहीं जा रहा। मॉनिटरिंग कमेटी एक निरंकुश तानाशाह की तरह अड़ियल रवैय्ये से काम कर दिल्ली भर में सीलिंग करने पर तुली हुई है।


श्री खंडेलवाल ने स्पष्ट रूप से कहा कि सरकारी जमीन पर यदि किसी ने क़ब्जा किया हुआ है तो उसके ख़िलाफ कारवाई की जाए, व्यापारियों को कोई एतराज नहीं होगा। लेकिन दशकों से व्यापार कर रहे व्यापारियों की दुकानों को बिना कोई नोटिस और पर्याप्त समय दिए सील करना बेहद अलोकतांत्रिक है। दिल्ली नगर निगम कानून 1957 जो संसद द्वारा पारित किया हुआ कानून है की खुले आम धज्जियाँ उड़ाई जा रही हैं। कोई देखने और सुनने वाला नहीं है।


कैट के दिल्ली प्रदेश अध्यक्ष सुशील गोयल ने मांग करते हुए कहा कि जिन मार्केटों को शिफ्ट होना है उन्हें शिफ्ट होने वाले स्थान पर सारी ढांचा गत सुविधाए पहले उपलब्ध कराई जाएँ और इन क्षेत्रो को डीडीए एवं नगर निगम द्वारा जो नोटिस दिए गए हैं उन्हें तत्काल वापिस लिया जाए। व्यापारी शिफ्ट होने के तैयार हैं लेकिन मास्टर प्लान के प्रावधानों का पालन करते हुए उनके वर्तमान जगह पर ऑफिस जारी रखने में कोई रोक टोक न लगाई जाए। प्रदेश महामंत्री उमेश सेठ ने मांग करते हुए कहा कि स्पेशल एरिया जिसमें शहरी क्षेत्र, करोल बाग, सदर बाजार, पहाड़गंज, दरिया गंज आदि आता है पर कन्वर्जन शुल्क के बारे में स्तिथि स्पष्ट की जाए।


श्री खंडेलवाल एवं बवेजा ने यह भी कहा कि अध्यादेश अथवा बिल में सरकार एक कट ऑफ डेट की एवज में यदि कोई उचित शुल्क लगाया जाता है तो व्यापारी वो भी देने को तैयार हैं। उन्होंने कहा का पिछले कई दशकों से चल रही दुकानों पर कारवाई बेमानी है जबकि सरकार को चाहिए की वो भविष्य के लिए क़ानून सख़्त बनाए जिससे कोई उसका उल्लंघन न करने पाए। वहीं दूसरी ओर अधिकारियों की मनमानी और भ्रष्टाचार पर भी रोक लगाई जाए।