निहायत सरल, सहज और जमीनी राजनेता पद्म भूषण कड़िया


गणतंत्र दिवस के अवसर पर अलग-अलग क्षेत्रों में देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान पाने वालों में झारखंड की पांच विभूतियां अर्थात शख्सियतें भी शामिल हैं। इनमें खूंटी से भारतीय जनता पार्टी के सांसद कड़िया मुंडा को सामाजिक कार्य के लिए पद्म भूषण मिला है। झारखंड से ही स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने के लिए श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए जमुना टुडू, सांस्कृतिक क्षेत्र में सराहनीय योगदान के लिए बुलू इमाम को पद्मश्री और पर्वतारोही बछेंद्री पाल को पद्म विभूषण से सम्मानित करने की घोषणा की गई है। कड़िया मुंडा खूंटी जिले के अनिगड़ा गांव के चांडिलडीह टोला के रहने वाले हैं। उनका जन्म 20 अप्रैल 1936 को एक साधारण आदिवासी परिवार में हुआ है। उनकी संतान में दो पुत्र और तीन पुत्रियां हैं। कड़िया मुंडा ने रांची विश्वविद्यालय से स्नातकोतर अर्थात एमए की शिक्षा प्राप्त की है। झारखंड के खूंटी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से आठ बार सांसद रह चुकेखूंटी के सांसद कड़िया मुंडा को पद्मभूषण से विभूषित किया जा रहा है। इसके साथ ही कड़िया मुंडा झारखंड से पद्मभूषण पाने वाले पहले राजनेता भी न गये हैं। वे छठी, नवीं, दसवीं, ग्यारहवीं, बारहवीं, तेरहवीं, पन्द्रहवीं और सोलहवीं लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं। खूंटी से आठ बार सांसद रहे कड़िया मुंडा तीन बार केंद्र में मंत्री और एक बार लोकसभा उपाध्यक्ष भी रह चुके है। सादा जीवन उच्च विचार की कहावत को वास्तविक जिन्दगी में कृतार्थ करने वाले कड़िया मुंडा के द्वारा लोगों की गई सेवा का ही परिणाम है कि आज देश के प्रतिष्ठित सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया जा रहा है। ग्रामीण पृष्ठभूमि की सादगी और कार्य को लेकर समर्पण के साथ- साथ साफगोई भरी पहचान रखने वाले भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व लोकसभा उपाध्यक्ष और वर्तमान सांसद कड़िया मुंडा को पद्म भूषण सम्मान से अलंकृत किये जाने की घोषणा से पूरे खूंटी लोकसभा क्षेत्र सहित सम्पूर्ण झारखंड में खुशी की लहर दौड़ गयी। उन्हें सम्मानित किये जाने से झारखंड के लोग गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं। कार्य के प्रति लगाव, सादगी और आमजनों के साथ उनकी सर्वसुलभ उपस्थिति, स्वतंत्रता आंदोलन के दौर के नेताओं की याद ताजा कर देती है। आज भी उन्हें जब समय मिलता है वे अपने खेत में काम करते हैं। केंद्र में मंत्री रहते हुए खेतों में हल चलाने वाले सरल स्वभाव के कड़िया मुंडा की क्षेत्र में लोकप्रियता का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले आठ बार से वे लोकसभा में खूंटी क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं। उनका लंबा सार्वजनिक जीवन है। कड़िया मुंडा 1977 में पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर सांसद चुने गये। 1980 और 1984 के आम चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। इसके बाद 1989, 1991, 1996, 1998, 1999 2009 और 2014 में वे भाजपा के टिकट पर लोकसभा के लिए चुने गये। 2004 में कांग्रेस की सुशीला केरकेट्टा ने उन्हें पराजित किया था। कड़िया मुंडा झारखंड विधानसभा में भी खूंटी और बिहार विधानसभा में खिजरी का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। वे केंद्र में कई विभागों के मंत्री और लोकसभा के डिप्टी स्पीकर के पद को भी सुशोभित कर चुके हैं। कड़िया मुंडा 1977 में जनता पार्टी की सरकार में स्टील और खान मंत्री बने। 2003 में वे कोयला मंत्री बनाये गये। बाद में उन्हें कृषि आधारित उद्योग विभाग का मंत्री बनाया गया। वे आठ जून 2009 से 12 अगस्त 2014 तक लोकसभा के उपाध्यक्ष रहे। वे आदिम जाति सेवा मंडल के संस्थापक सदस्य भी हैं। कड़िया मुंडा आजीवन आदिवासियों की सेवा और विकास में लगे रहे। आज भी उनके मार्ग निर्देशन में कई स्कूल और अस्पताल चल रहे हैं।
ज्ञातव्य हो कि भारत सरकार ने 25 जनवरी शुक्रवार की रात पद्म भूषण पुरस्कार के लिये कड़िया मुंडा के नाम की घोषणा की। झारखंड से पद्मभूषण पाने वाले पहले नेता कड़िया मुंडा खुंटी से आठवीं बार के सांसद है। इसके अलावे कड़िया मुंडा दो बार विधायक भी रह चुके है। कड़िया मुंडा को सादगी का दूसरा नाम माना जाता है। केंद्रीय मंत्री, लोक सभा उपाध्यक्ष समेत कई बड़े ओहदा पर रहने के बावजूद भी वे हमेशा से सरल जीवन व्यतित रहते है। न तो दिखावा करते है और न ही लाव लस्कर के साथ चलते है। कड़िया मुंडा अब तक चीन, फ्रांस, लंदन, नेपाल, नॉर्थ कोरिया, सिंगापुर, थाईलैंड व युएई का भ्रमण कर चुके है। कड़िया मुंडा ने राजनीति का पहला पाठ जनसंघ से ही पढ़ा है। 70 के दशक में कड़िया मुंडा पहली बार जनसंघ से जुड़े और फिर बाद में बिहार प्रदेश जनसंघ में सहायक सचिव के रुप में कार्य किया। भाजपा में भी दो बार राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व अनुसूचित जन जाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे पदों पर कार्य कर चुके है। केंद्र की अटल बिहारी बाजपेयी की सरकार में कड़िया मुंडा कैबिनेट मंत्री भी रह चुके है। इंदिरा गांधी द्वारा आपातकाल लागू करने के बाद 1977 में कड़िया मुंडा पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर खूंटी से जीत दर्ज कर संसद पहुंचे थे।
निहायत सरल, सहज और जमीनी राजनेता के तौर पर उनकी पहचान रही है। ग्रामीण परिवेश में रहना उन्हें पसंद है, और अब भी वे खेतों में काम करते हैं, नदी-तालाब में नहाते हैं, धान की खेती के साथ आम, ईमली, कटहल के मौसम में वे गांवों के लोगों से घूम- घूम कर जानते हैं कि इस बार खेती का क्या हाल है और पेड़ों पर फल कैसे आए हैं?खूंटी स्थित अनिगड़ा गांव में उनसे मिलने के लिए आम और खास के लिए समान सुविधा है। खादी का धोती, कुर्ता-पाजामा और बंडी उनका पसंदीदा वस्त्र है। संसदीय क्षेत्र के दौरे में अक्सर वे पैदल चलते हैं तथा तामझाम पर कभी जोर नहीं देते। कड़िया मुंडा लोकसभा का चुनाव आठ बार जीत चुके हैं, और केंद्र में दो बार- मोरारजी देसाई और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वे मंत्री भी रहे हैं। पहली दफा 1977 में उन्होंने चुनाव जीता था। इसके अलावा वे दो बार विधायक भी रहे हैं। भाजपा में अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज सरीखे नेताओं के बीच कड़िया मुंडा लोकप्रिय रहे हैं। 2009-2014 में केंद्र में यूपीए के कार्यकाल में वे लोकसभा उपाध्यक्ष बनाए गए थे। तब मीरा कुमार लोकसभा की अध्यक्ष थीं। संसद की कई समितियों में वे शामिल रहे हैं। साथ ही चीन, फ्रांस, जापान समेत कई देशों के दौरे पर गए हैं। झारखंड में अफसरों, मंत्रियों के साथ मुख्यमंत्री के सामने भी बेलाग और दो टूक बोलने के लिए जाने जाते हैं। अपने क्षेत्र के कार्यकर्ताओं के साथ भी उनका सीधा और सहज संबंध रहता है। कई मौके पर झारखंड में बीजेपी सरकार के कामकाज पर भी वे सवाल खड़े करते रहे हैं तथा भारतीय जनता पार्टी के अंदर भी पार्टी के रुख पर साफगोई से बोल जाते हैं।
उल्लेखनीय है कि लंबे राजनैतिक जीवन में अपराध या भ्रष्टाचार के किसी विवाद में उनका नाम कभी नहीं आया। चुनावों में बेहिसाब पैसे खर्च करने के वे खिलाफ रहे हैं। झारखंड में मुख्यमंत्री के नाम पर कई बार उनका नाम उछाला गया, लेकिन इसके लिए उन्होंने किसी किस्म की लॉबिंग नहीं की और ना ही सीधे तौर पर दावेदारी। आदिवासी इलाके में सामाजिक कार्य और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने कई संस्थान- संगठन की स्थापना की है। कड़िया मुंडा की पत्नी और बेटियां भी ग्रामीण परिवेश को ज्यादा पसंद करती रही हैं। दो साल पहले कड़िया मुंडा की बेटी ग्रामीण हाट में आम लेकर पहुंची थी। तब उन्होंने बताया था कि बगीचा में ज्यादा आम फलने की वजह से वो बाजार लेकर आई हैं। कड़िया मुंडा विपरीत परिस्थितियों में भी घबराते नहीं। धैर्य से सामना करते हैं। अपने निकट के लोगों से विचार विमर्श करना पसंद करते हैं, ऊंची आवाज में वे नहीं बोलते। पिछले वर्ष खूंटी में पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान पत्थलगड़ी समर्थकों ने उनके आवास पर तैनात पुलिस के तीन जवानों का अगवा कर लिया था। तब भी वे विचलित नहीं हुए। उनकी पहली प्रतिक्रिया थी- राज्य सरकार इस मामले को फुंसी से फोड़ा बना रही है।