लेबल रहित ईश्वर को जानो


ईश्वर, ईश्वर के बारे में अनेकानेक मत-मतांतर हैं। कोई कहता है निराकारहै तो कोई कहता है, साकारहै, जबकि कुछ लोग साकार व निराकार दोनों को मानते हैं। ईश्वर के नाम पर मंदिर-मस्जिद, गुरुद्वारा व चर्च बन गए तथा कहते हैं ईश्वर कहो या अल्लाह, राम कहो या रहीम, ईश्वर एक है लेकिन फिर भी ईश्वर के नाम पर हिंसा होती है। जो सर्वव्यापक है वह भला एक चारदिवारी में बंद कैसे हो सकता है?


ईश्वर न स्त्री लिंग है, न पुलिंग बल्कि वह तो एक अविनाशी शक्ति है। लोग ईश्वर को रंग-बिरंगे कपड़े पहनाते हैं, जबकि वह कपड़े पहनता ही नहीं क्योंकि वह अशरीर है, अर्थात बिना देह का है। धर्म, संस्-ति, जाति, देश, काल, परिस्थिति से एकदम अलग ईश्वर सगुण भी है, निर्गुण भी परंतु इसमें भी वाद-विवाद है। हमने ईश्वर को कई तरह के लेबल लगा दिए हैं कि वह ऐसा है, वह वैसा है परंतु ईश्वर लेबल रहित है। कहते हैं कण-कण में व्याप्त है, लेकिन हमारे ही शरीर में ही मौजूद है इस पर विश्वास नहीं है, तो बेतुकी बात हुई न कि ईश्वर कण-कण में है।


यदि यह दृढ़ विश्वास होता कि ईश्वर हमारे संग सदा मौजूद है तो बाहर क्यों ढूंढ़ते? ईश्वर न हिंदू है, न मुस्लिम है, न सिक्ख है, न ईसाई है यह लेबल तो हमने लगा दिए हैं। ईश्वर के न कान है, न आंख है, न पैर है, न चेहरा। फिर भी वह सबकी खबर रखता है। कहा है न कि बिनु पग चलहिं, सुनहिं बिनु काना, बिनु कर करम करहिं विधि नाना।ईश्वर न हाजिर है, न गायब है, फिर भी वह है। वह है तो सारा संसार है और वह तब भी रहेगा, जब संसार काल के गर्भ में समा जाएगा और इस दृश्यमान जगत के पूर्व भी वह था अर्थात वह था, है और रहेगा, उसका कभी नाश नहीं होता है इसलिए अविनाशी कहा है। कैमरे से उसकी फोटो नहीं ली जा सकती क्योंकि आज तक ऐसा कोई कैमरा बना ही नहीं है। हमारे अंदर ईश्वर है, लेकिन हम ईश्वर नहीं है जैसे गिलास में दूध है, परंतु गिलास दूध नहीं है। हम ईश्वर के अंश है, ईश्वर नहीं क्योंकि लोगों को यह भी भ्रम है कि चूंकि मेरे अंदर ईश्वर है तो मैं भी ईश्वर हूं जैसा कि वेदांती कहते हैं-अहं ब्रह्मस्मि।


ईश्वर के नाम पर इतनी धारणाएं हैं, कल्पनाएं हैं जिसकी कोई हद नहीं। जबकि भगवान श्री -ष्ण कह रहे हैं, मैं कल्पना से परे हूं, मन बुध्दि से मुझे नहीं पा सकते। ईश्वर के नाम पर जितना भ्रम है, संशय है उतना और किसी विषय में नहीं है और इसका एक ही कारण है अज्ञानता। इतना घोर अंधकार है, अज्ञानता है कि लोगों ने अपनी समझ की, विवेक की आंखें भी बंदकर ली है। ईश्वर कोई अनबूझ पहेली नहीं है और न ही वाद-विवाद व तर्क का विषय है बल्कि ईश्वर तो अनुभवगम्य है। बड़ी ही सरलता से, सहजता से व सुगमता से ईश्वर का अपने ही शरीर में अनुभव किया जा सकता है। यदि हमारी सच्ची प्यास है, तड़प है हमारे अंदर ईश्वर को जानने की, समझने की तो वह हमसे दूर नहीं है, सदा संग है। कहा है मुझको कहा ढूंढ़े बंदे, मैं तो तेरे पास में।हर स्वांस में मौजूद है। खोजी होय तो तुरंत मिल जाऊं पल भर की तलाश में।


तो मित्रों, खुले हृदय से बिना कोई तर्क या वाद-विवाद के प्रथम यह स्वीकार करें कि ईश्वर जो मेरे अंदर है उसका अनुभव प्राप्त करूं। दूसरा सब प्रकार के लेबल जो ईश्वर पर लगा दिए हैं उसे निकालकर अपने अंतःकरण में विराजमान ईश्वर को जानने व पहचानने हेतु किसी सच्चे मार्गदर्शक की मदद ले सकते हैं। क्योंकि बिना मार्गदर्शक के ईश्वर के बारे में सही जानकारी नहीं मिलती। मनगढ़ंत, कल्पनाओं का ईश्वर हमें सच्चा सुख नहीं दे सकता। हां, यदि हृदय स्थित ईश्वर की शरणागत हो जाएंगे तो परमानंद का अनुभव प्राप्त कर जीवन सफल हो जाएगा। आशा है आप इस ओर कदम बढ़ाएंगे-आंखें मूंदकर नहीं बल्कि आंखें खोल कर ईश्वर को पाने की राह पर अग्रसर होंगे।