कलम के बलिदान की विजय है राह रहीम को उम्रकैद


दो साध्वियों के यौन उत्पीड़न मामले में सजा भुगत रहे डेरा सच्चा सौदा प्रमुख रहे गुरुमीत राम रहीम को अब पत्रकार रामचंद्र छत्रपति हत्याकांड में उमर कैद की सजा भुगतनी होगी। लंबे इंतजार के बाद चंडीगढ़ की अदालत ने आखिर वो फैसला सुना दिया जिसकी निर्भीक और निष्पक्ष कलम की आजादी के पैरोकार लंबे समय से मांग कर रहे थे। इस फैसले ने समाज को सच्चाई दिखाने वाले नागरिकों व अपनी जान की परवाह न करने पत्रकारों को न्याय के लिए लड़ने के लिए नया हौंसला दिया है। सीबीआई कोर्ट का यह फैसला धर्म की आड़ में नैतिकता को तार तार करने वाले पाखंडियों कड़ा प्रहार करता नजर आता है।
1990 से डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख रहा गुरमीत राह रहीम ने आध्यात्म का सहारा लेकर अपना झूठा आभा मंडल किस कदर रचा था पंजाब हरियाणा ही नहीं पूरे देश ने देखा है। गुरमीत ने अच्छाई पर चलने का नाटक करते हुए अपने आश्रम में किस कदर की हैवानियत मचाई ये 2016 में कुछ पीड़ित साध्वियों के खुलासे के बाद देश ने देखा है। गुरमीत इसी मामले में चंडीगढ़ की सुनारी जेल में फिलहाल पहले से सजा भुगत रहा है। देश ने स्वयंभू मैसेन्जर ऑफ गॉड बनकर लाखों लोगों में झूठ की नींव पर नेकदिल छवि बनाने का षड़यंत्र किया था। गुरमीत अपने शतिर दिमाग की बदौलत काफी हद तक कई सालों से इसमें कामयाब भी रहा था।
वो राजनेताओं का आदर का पात्र बना हुआ था तो लाखों लोग उसके सामाजिक और धार्मिक दिखावे से अनजान रहते हुए उसे संत की तरह पूजते थे। डेरा सच्चा सौदा प्रमुख के नाते वो पंजाब हरियाणा के मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों से लेकर आला अफसरों से आए दिन सम्मान पाता था। इस छद्म रुप के बाबजूद गुरमीत का काला सच उसके आश्रम से ही दुनिया के सामने उजागर होने को तड़प रहा था। दिलेर और सच्च के सिपाही पत्रकार रामचंद्र छत्रपति उसकी काली करतूतें कई साल पहले जान चुके थे। गुरमीत के आश्रम की पीड़ित साध्वियों ने अपनी अनाम चिट्ठी के जरिए उसका असली चेहर उजागर करके रख दिया था। यह चिट्ठी तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम 2002 में लिखी गई थी। चिट्ठी तमाम धमकियों के बाबजूद पत्रकार रामचंद्र छत्रपति ने प्रकाशित की और उससे गुरमीत का सच सार्वजनिक हुआ भी मगर अंधभक्ति के दौर में उस पर तब कार्रवाई न हो सकी। उल्टा गुरमीत के खिलाफ खड़े होने वाले पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की ही गोली मारकर हत्या कर दी गई।
एक आजाद व लोकतांत्रिक देश में छिपा हुआ सच सामने लाने पर कितने जोखिम हैं इस घटना से समझा जा सकता है। ऐसा नहीं था कि तब पंजाब में लॉ एंड ऑर्डर नहीं था मगर लाखों अंधभक्तों के समूह में एक विपरीत बात उस भीड़ द्वारा न समझी जाती है और न ही उस पर बहस और चर्चा कर सही गलत का पता लगाने पर विचार किया जाता है। पंजाब का अखबार पूरा सच 2002 में ही सामने ला चुका था मगर पंजाब की सरकार, पुलिस व्यवस्था और गुरमीत के अंधभक्त उस सच पर गंभीर होने में सालों पीछे रह गए। वह लोगों की नजर में समाज सेवक, धर्मात्मा और आखिर में गॉड ऑफ मैसेंजर तक बन गया मगर विरोध की आवाज उठने में काफी वक्त लग गया। सच के सामने आने में इस देरी से समझा जा सकता है कि गुरमीत ने किस कदर अपने छद्म रुप से सबको अंधा बना रखा था और उसके काले कारनामे कैसे उसके सफेद चोगे के पीछे छिपे हुए थे। खैर सच आखिर सच होता है और कभी न कभी किसी न किसी के साहस के जरिए सामने आता ही है।
गुरमीत के आश्रम से ही साध्वियों ने उसके यौन शोषण का कारनामा देश दुनिया में उजागर कर दिया। पुलिस ने भी तभी उस पर हाथ डालने का साहस किया मगर अंधभक्त शर्मनाक तरीके से उसके समर्थन में यहां भी नहीं चूके। गुरुमीत ने अपने प्रभाव से भोले भाले साधकों से कार्रवाई का हिंसक विरोध भी कराया मगर तब तक देर हो चुकी थी। इस खुलासे के बाद ही गुरमीत का असली और काला चेहरा देश दुनिया के सामने पूरी तरह आया था। अब राजनीति और पुलिस से लेकर सच्चाई जान चुके समर्थक भी साथ छोड़ चुके थे। नतीजतन वो केवल जेल में रहा बल्कि साध्वियों के आरोपों पर उसके खिलाफ मुकदमा चला जिसमें उसे 20 साल की सजा सुनाई गयी थी। सुनारिया जेल में बंद गुरमीत को अब 17 साल पुराने पत्रकार छत्रपति प्रजापति मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। यौन शोषण के सच को दबाने के लिए खोजी पत्रकार की हत्या कितना बड़ा जुर्म है ये तर्क विशेष सीबीआई कोर्ट में अपनी दलीलों के जरिए सीबीआई के वकील ने रखा। सीबीआई ने इस जुर्म को जघन्य अपराध बताते हुए अदालत से गुरमीत को फांसी की सजा देने की मांग की थी। इंसाफ के लिए लड़ रहे दिवंगत पत्रकार प्रजापति ने अपने हौंसले से देश को संदेश दिया है कि सच परेशान हो सकता है मगर पराजित नहीं। यह फैसला समाज को पूरा सच दिखाने के लिए जान की परवाह न करने वाले पत्रकार छत्रपति प्रजापति के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि है। छद्म रुम में बड़े नामदार के अपराधों पर यह कड़ा फैसला देश में रुल ऑफ लॉ की दिशा में सार्थक और सही फैसला है।


-विवेक कुमार पाठक-(लेखक स्वतंत्र पत्रकार है)