घरेलू उद्योगों की कीमत पर नहीं करेंगे कोई समझौता: सुरेश प्रभु


इंडियन पेपर मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईपीएमए) का 19वां वार्षिक सम्मेलन आयोजित


नई दिल्ली, पेपर इंडस्ट्री देश के महत्वपूर्ण उद्योगों में से है। इस क्षेत्र में घरेलू मैन्यूफैक्चरिंग बढ़ाने के लिए सरकार हरसंभव प्रयास कर रही है। अन्य देशों के साथ व्यापार समझौतों में भी यह ध्यान रखा जाएगा कि घरेलू उद्योगों के हित प्रभावित नहीं हों। केंद्रीय मंत्री सुरेश प्रभु ने शुक्रवार को यह बात कही। वह इंडियन पेपर मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन (आईपीएमए) के 19वें वार्षिक सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे।


वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री प्रभु ने कहा, कागज उद्योग बेहद अहम है। सरकार घरेलू स्तर पर कागज की मैन्यूफैक्चरिंग सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है। किसी अन्य देश से मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) करने से पहले इस उद्योग से जुड़े लोगों से विमर्श किया जाएगा। घरेलू विनिर्माण को बढ़ावा देना हमारी व्यापार नीति के प्राथमिक लक्ष्यों में शुमार है। उन्होंने कागज उद्योग के सामने आने वाली अन्य चुनौतियों का भी जिक्र किया। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार खुद कागज उद्योग के बड़े ग्राहकों में शुमार है। इसलिए वह इस उद्योग की मुश्किलों को समझते हैं।


आईपीएमए के प्रेसीडेंट सौरभ बांगड़ ने बताया कि कागज उपभोग के मामले में भारत सबसे तेजी से बढ़ता हुआ बाजार है। पिछले 10 साल में यहां कागज की खपत करीब दोगुनी हो गई है। 2007-08 में कागज की खपत 90 लाख टन थी, जो 2017-18 में बढ़कर 1.7 करोड़ टन पहुंच गई। 2019-20 तक खपत दो करोड़ टन होने का अनुमान है। आईपीएमए के मुताबिक भारतीय कागज उद्योग महंगे कच्चे माल और अपेक्षाकृत सस्ते आयात के कारण मुश्किल में है।


जेके पेपर लिमिटेड के वाइस चेयरमैन और एमडी हर्षपति सिंहानिया ने कहा कि कागज खपत का वैश्विक औसत 57 किलोग्राम प्रति व्यक्ति है। विकसित देशों में यह औसत 200 किलोग्राम तक है। वहीं भारत में औसत खपत 13 से 14 किलो सालाना है। ऐसे में भारत में इस उद्योग के विस्तार की अपार क्षमता है। वहीं आईपीएमए के नव निर्वाचित प्रेजीडेंट ए.एस. मेहता ने कहा कि हमने इस भ्रम को भी तोड़ा है कि कागज निर्माण में पेड़ों का इस्तेमाल होता है। यहां कागज उद्योग वन आधारित नहीं, बल्कि कृषि आधारित है। किसानों द्वारा खेतों में उगाए गए विशेष पेड़ों से कागज उद्योग के लिए कच्चा माल मिलता है। उद्योग की जरूरत के लिए करीब नौ लाख हेक्टेयर का वनीकरण किया गया है। उद्योग की जरूरत का 90 फीसद कच्चा माल उद्योग प्रायोजित वनीकरण से मिल जाता है। इससे करीब पांच लाख किसानों को रोजगार मिला है। आईपीएमए ने बढ़ते आयात पर भी चिंता जताई।