दलित साहित्य महोत्सव 2019 को लेकर हुई पत्रकार वार्ता


नई दिल्ली, आगामी 03 फरवरी, 2019 को किरोड़ीमल कॉलेज में आयोजित होने वाले दो दिवसीय प्रथम दलित साहित्य महोत्सव को लेकर शुक्रवार को दिल्ली यूनिवर्सिटी के नार्थ कैम्पस स्तिथ यूनिवर्सिटी गेस्ट हाउस में एक प्रेस कोंफ्रेस का आयोजन किया गया। प्रेस कोंफ्रेस को संबोधित करते हुए दलित लिटरेचर फेस्टिवल के अध्यक्ष डॉ. नामदेव ने कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत में सामाजिक न्याय के सवाल को साहित्य के माध्यम से आगे बढ़ाना है। इसीलिए इस बार के इस फेस्टिवल का मूल थीम हमने दलित शब्द को ही रखा है। क्यूंकि आज इस शब्द पर ही हमले हों रहे हैं। चाहें प्रगतिशील हो या प्रतिक्रियावादी सभी को इस शब्द से परशानी हो रही है।


उन्होंने आगे बताया कि इस फेस्टिवल के माध्यम से भारत की 20 भाषाओं के दलित-आदिवासी, महिला, घुमंतू और अल्पसंख्यक समुदाय के लेखकों से संपर्क किया है जिसमें 15 भाषाओं के लेखक, संस्कृतिकर्मी, गायक, नाटककार कलाकार शामिल होंगे। इसमें महारास्ट्र से साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत मराठी आदिवासी लेखक लक्ष्मण गायकवाड लक्ष्मण गायकवाड, शरणकुमार लिम्बाले, विश्व प्रसिद्द मराठी दलित आर्टिस्ट सुनील अभिमान अवचार। गुजरात से हरीश मंगलम और आदिवासी कवी-गायक गोवर्धन बंजारा।


कन्नड़ भाषा के महत्वपूर्ण आदिवासी लेखक शान्था नाइक, पंजाबी भाषा के साहित्य अकादमी पुरस्कृत लेखक बलबीर माधोपुरी, क्रान्तिपाल, मदन वीरा और मोहन त्यागी, दक्षिण से बामा, अन्द्लुरी सुधाकर शामिल होंगे। हिंदी से शामिल होने वालों में मोहनदास नैमिशराय, जयप्रकाश कर्दम, ममता कालिया, उदय प्रकाश, चैथीराम यादव, हरिराम मीणा, बल्ली सिंह चीमा। भोजपुरी भाषा से बिहार से मुसाफिर बैठा, प्रहलादचाँद दास। भोपाल से असंगघोष। लखनऊ से मंतव्य पत्रिका के संपादक और ज्ञानपीठ से पुरस्कृत कथाकार कवी हरेप्रकाश उपाध्याय। आगरा से सुनों ब्राह्मण जैसी कालजयी रचनाकार के लेखक मलखान सिंह होंगे


रिदम के डायरेक्टरदिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो. हंसराज सुमन ने बताया कि इस लिटरेचर फेस्टिवल की मुख्य बात इसमें महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और गुजरात से आने वाले लोकगायक रहेंगे जो दलित आदिवासी परम्परा और संस्कृति को यहाँ प्रस्तुत करेंगे। प्रेस कोंफ्रेस को संबोधित करते हुए आंबेडकरवादी लेखक संघ के अध्यक्ष बलराज सिंहमार ने कहा कि अलेस विगत दो साल से इस फेस्टिवल की प्लानिंग कर रहा था वो अब जाकर मूर्त रूप ले रही है। इग्नू के प्रोफेसर प्रमोद महरा ने कहा कि साहित्य के माध्यम से एक महत्वपूर्ण, संवेदन शील और जागरूक समाज का निर्माण किया जा सकता है। इस अर्थ में यह दलित फेस्टिवल जातिव्यवस्था को मिटाने के लिए बड़ी भूमिका निभा सकता है।


दिल्ली यूनिवर्सिटी की प्रो. और स्त्रीवादी चिन्तक डॉ. हेमलता कुमार ने कहा कि आज कोर्पोरेट घरानों ने साहित्य को कब्जाने की मुहीम चला रखी है। पुरुषवादी संस्कार समाज और साहित्य में हावी हों रहें हैं। स्त्रियां भी दलित की श्रेणी में ही आती हैं। इसलिए ये महोत्सव एक ऐतिहासिक भूमिका निभाएगा। जामिया के प्रोफेसर और दलित चिन्तक मुकेश मिरोठा ने कहा कि इस कार्यक्रम के उदघाटन सत्र में आन्दोलनकर्मी मेधा पाटेकर, मेगसेसे पुरस्कृत आन्दोलनकर्मी बैज्वाड़ा विल्सन, और दक्षिण के दलित लोकगायक गदर भी उपस्थित रहेंगे।