बचाइए सड़क पर बाधारहित चलने का अधिकार


हर रोजाना कई बार सड़क पर निकलते हैं और जाम में फंसते हैं। कई दफा हम सवारी वाहनों में होते हैं तो कई दफा पैदल या साइकिल से। जाम में फंसने से लगता है रफतार रुक गई है। ट्रैफिक जाम में इंतजार के साथ ही वाहनों का काला धुआं सांसों में जाता है सो अलग। ऐसे में कई बार सवाल उठता है कि क्या हमारा एक बड़ा अधिकार तो नहीं छिनता जा रहा है? क्या हम सड़क पर बाधारहित चल पा रहे हैं? क्या ये हमारा मौलिक अधिकार नहीं है? आखिर हम सोचते क्यों नहीं कि इस अधिकार को हम और हमारे जैसे दूसरे वाहन स्वामी एक दूसरे के लिए बेख्याली में कम करते जा रहे हैं।
आज विकास का पैमाना रफतार हो गया है। तेजी से सड़कें बनें, तेजी से गगनचुंबी इमारतें खड़ीं हों, तेजी से नए नए मॉडल की लाखों कारें और करोड़ों दुपहिया वाहन बिकें और वे फटाफट सड़कों पर उतरें। खरीदने वाला इन्हें अपनी जरुरत और स्टेट्ट समझकर अपना विकास कहता है तो ऑटोमोबाइल कंपनियां नए नए मॉडल के अनगिनत वाहन बेचकर शुद्ध मुनाफा कमा ही रही हैं।
अर्थशास्त्र में यही विकास है पर क्या आंकड़ों का अर्थशास्त्र व निर्माण और विक्रय की यह रफतार देश की परिवहन व्यवस्था पर अनावश्यक बोझ नहीं बढ़ा रहीं। देश की धमनियां कहीं जाने वाली सड़कों पर वाहनों का सैलाब सा बनता जा रहा है। हाइवे पर आम जरुरत का सामान ढोने वाले ट्रकों के अलावा भी अनगिनत वाहनों का अब बोझ बढ़ता जा रहा है। हाइवे पर सार्वजनिक सवारी वाहनों से कहीं अधिक निजी चारपहिया वाहनों को रेस लगाते हुए देखा जा सकता है। वाहनों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि के कारण आए दिन तमाम हाइवे जाम के दृश्य देखते हैं। शहरी और महानगरीय सड़कों का तो हाल और ही बुरा है। किसी महानगर में सड़कें जिस गति से बढ़ रही हैं उससे कई गुना तेजी से ऑटोमोबाइल शोरुमों से रोज सैकड़ों नए वाहन उन पर उतर रहे हैं। इससे सड़कों पर वाहनों का कारवां बढ़ता ही जा रहा है। हालत ये हो रही है कि अब संपन्न ही नहीं मध्यमवर्गीय परिवारों में चैपहियों वाहनों के प्रति लगाव बढ़ता जा रहा है। जो संपन्न है वे नकद वाहन खरीद रहे हैं जो तुरंत नहीं दे सकते वे किश्तों पर कार में घूम रहे हैं। उच्च वर्ग में एक ही घर में कई सदस्यों में अलग चैपहिया वाहन है। मध्यम वर्ग में यह स्थिति दुपहिया वाहन को लेकर है। मां, पिता और बेटा बेटी सब अपने अपने अलग वाहन से सड़कों पर दौड़ते हैं। ऑटोमोबाइल कंपनियां भी हर दूसरे माह नया मॉडल लाकर इस प्रवृत्ति को बढ़ा रही हैं। कुल मिलाकर सार्वजनिक वाहनों की सवारी से ज्यादा अपना अपना अलग वाहन क्षमतावान नागरिकों का शगल बनता जा रहा है।
जैसे जनसंख्या वृद्धि से आवास समस्या बढ़ रही है वैसे ही सड़कों पर वाहनों की बढ़ती तादात ने महानगरों की रफतार को सुस्त कर रखा है। रोज हर महानगर में नियम समय अंतराल से जाम लगता रहता है। जाम में फंसे लोग वाहनों की सवारी करते हुए सरकारों को कोसते हैं मगर इसके कारण पर गौर नहीं करते। सरकारें न तो सड़कों को जादूगर की तरह कई गुना बढ़ा सकती हैं और न ही उन्हें पहले से बहुत चैड़ा कर सकती हैं। महानगरों की परिवहन व्यवस्था सुधार तभी होगा जब लोग निजी वाहनों के अतिशय प्रेम का मोह जिम्मेदारी से छोड़ेंगे और आवागमन के लिए सवारी वाहनों की ओर मुड़ेंगे।
दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, बैंग्लोर के निवासी करोड़ों की जनसंख्या के बाबजूद पहले से बेहतर आवागमन कर पा रहे हैं तो इसका सीधा सा कारण वहां सार्वजनिक आवागमन की लोकप्रियता है। दिल्ली में मेट्रो, मुंबई में लोकल ट्रेन के अलावा लाखों लोग बसों, ऑटो और कारपूलिंग कर सड़कों पर कार पूलिंग करते हैं। इसकी इससे भी अधिक जरुरत है। इन मेट्रो शहरों की तरह ग्वालियर, भोपाल, इंदौर, जबलपुर, उज्जैन सहित मध्यम आकार के तमाम शहरों में सार्वजनिक वाहनों की ओर मुड़ना वक्त की मांग है। अगर हम चाहते हैं कि हम जाम में न फंसे और सड़क पर बाधारहित चलें तो हमें फिकर करनी होगी कि हम जैसे दूसरे शहरवासी भी हमारे वाहन प्रेम के कारण जाम में न फंसे।
आवागमन के लिए वाहन रखें मगर शौक के लिए धड़ाधड़ वाहनों की खरीदी न करें क्योंकि इससे सड़कों पर जाम और अननिगत वाहनों का मेला लगेगा और उसमें किसी को भी बाधारहित चलने का नागरिक अधिकार कैसे भी नहीं मिल सकता।