दिल्ली के कला, संस्कृति और भाषा विभाग, साहित्य कला परिषद द्वारा युवा नाट्य समरोह के छठे संस्करण के चैथे दिन उत्सव के चैथे दिन लोगों ने महान कवि डॉ. चंद्रा शंकर कंबर द्वारा लिखित एक प्रसिद्ध नाटक शिवरात्रि का आनंद लिया। यह नाटक कर्नाटक में बारहवीं शताब्दी में किए गए शरण आंदोलन पर आधारित है।
शरण आंदोलन भारतीय इतिहास की सबसे असामान्य घटना थी, जिसमें सामाजिक समानता पर बल दिया गया था और शारीरिक श्रम द्वारा अर्जित आय को को ही उत्तम और श्रेष्ठ माना गया है। आंदोलन के आयोजकों ने शिवलिंग अर्पित कर बासवन्ना के लोगों को शरण घोषित किया। कहानी में दो तरह के लोग हैंः लिंगायत जो शरण हैं और मिट्टी से बने घरों में रहते हैं। दूसरी ओर, महल में रहने वाले लोग जो स्वार्थी और लालची हैं और जिनके राजा बिज्जल देव हैं।
यह नाटक सामाजिक और वैचारिक टकराव से भरा है जो समाज के कई पहलुओं पर प्रकाश डालता है। इस विचार के साथ कि धर्म आम आदमी का अधिकार है और भगवान की पूजा के लिए कोई विशिष्ट तरीके और भाषा नहीं है, लेकिन यह प्रत्येक आम व्यक्ति की अलग-अलग लोक शैली, बोली और भाषा के साथ बदलता है। प्राचीन घटना पर आधारित यह नाटक आज के आधुनिक पंथों, धार्मिक मतभेदों और सामाजिक मतभेदों को भी समेटे हुए है। मूल रूप से कन्नड़ में लिखे गए इस नाटक का हिंदी में अनुवाद वीणा शर्मा ने किया है, जो प्रसिद्ध थिएटर निर्देशक हैं जिन्होंने कर्नाटक के एक छोटे से शहर से नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (एनएसडी) तक अपना सफर तय किया सिर्फ और सिर्फ अपनी प्रतिभा के ऊपर।