टेक्नोलॉजी के ठेलुओं की तरह तू भी ठेल

व्यंग्य


ठेल बेटा। बिना देखे ठेल। ठेलता चल। तू ही असली ठेलनहार है। ठेलक है। ठेलवा है। आधुनिक भाषा में कहें तो तू ही फारवर्डिंग एजेंट है। जो भी मिले उसे फारवर्ड कर। सब तेरी राह देख रहे हैं बेटा। तू ठेलता चल। जो भी पीछे से आये, उसे आगे ठेल। सबके पास ठेल। वापिस पीछे ठेलने की व्यवस्था नहीं है। जो पीछे से आया है, पीछे तभी वापिस जाएगा जब तू उसे फारवर्ड करेगा। पूरी धरती का चक्कर लगा कर ही चीजें वापस पहुंचती हैं। ठिलती हैं। तू आगे ठेलेगा तभी वे उसे और आगे ठेल पाएंगे।


मत देख कि मैसेज में क्या है, कहां से आया है, इसे किसने भेजा है, और क्यों भेजा है। तू तो बस इसे ठेल। मत देख कि ये किसके पास जा रहा है, क्यों जा रहा है, तेरे किस काम का था और किसके किस काम का है। याद रख, तुझे मैसेज ठेलने वाले ने भी ये नहीं देखा कि कहां से आया, उसमें क्या था, उसे तो बस ठेलना था, ठेल दिया। तू भी वही कर। उसे पता है जिसने यह पोस्ट भेजी थी, उसने भी नहीं पढ़ी है और जिसके पास जा रही है, वह भी नहीं पढ़ेगा, बस मिलते ही ठेल देगा। यही परंपरा है। फारवर्ड करना, ठेलमठेल करना निरंतरता का पहला मूल मंत्र है। इसमें बाधा मत बन। ठेलना जीवन है। अमरता है। ठेलन फुल सर्किल है, एक क्रिया है, सोच है, शैली है, बड़ी समाज सेवा है, अर्थ व्यवस्था है। ठेलन मल्टीधप्लीकेशन का अंतर्राष्ट्रीय बाजार है। एक आदमी भेजता है, दूसरा उसे फारवर्ड करता है। पहिया चल पड़ता है।


इसके पीछे पूरा मोबाइल उद्योग है। वहां हजारों इंजीनियर और हजारों एमबीए हैं। उनकी मोटी पगारें हैं, पगार से मोटे सपने हैं, और सपनों से भी महंगे आइडियाज हैं जिनसे ये दुनिया बदलेगी। देख तो सही, तेरे एक फारवर्ड से कितने घर चलते हैं। तू अगर फारवर्ड करना बंद कर दे तो सोच, तेरे अठेलन कार्य से कितने पिज्जा सेंटर और कॉफी शॉप्स बंद हो जाएंगे। जरा सोच, युवा पीढ़ी तब क्या करेगी। लोग तब उल्लू रह जाएंगे। विदेशों में उल्लू बेशक समझदार हो, भारत में तो उल्लू ही रहता है। तू देश को उल्लू् बनने से रोक।


चल, तुझे एक कहानी सुनाता हूं। एक थे राजा भर्तृहरि। वही अपने अमर फल वाले। उन्हें एक साधु ने दिया अमर फल। बिना ओपन किए फल रानी को फारवर्ड कर दिया। रानी ने अपने प्रेमी को। प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को। अमर फल एक से दूसरे प्रेमी को फारवर्ड होता रहा और सर्किल पूरा करके वापिस राजा के इन बाक्स में आ गिरा। पूरे सर्किल में किसी ने किसी की भी प्रोफाइल नहीं देखी, फ्रेंड लिस्ट चेक नहीं की। यहां तक कि गूगल सर्च में अमर फल के बारे में कुछ सर्च ही नहीं किया। फ्री होम डिलीवरी के साथ फ्री का अमर फल बैकवर्ड इतिहास का गवाह बना। यही होता है। पैकेट ओपन किये बिना आगे ठेलने पर अमरता नहीं मिलती।


कितना कुछ तो है बाजार में जो फारवर्ड हो रहा है। बेकार के तथ्य, उल्टी-सीधी बातें, उपदेश जो पढ़े बिना आगे ठेले ही जाने हैं। कभी दर्दनाक तस्वीरें और कभी साक्षात भगवान। वही सब कुछ घूम फिर कर, पूरी धरती के सात चक्कर काट कर बार बार इन बाक्स में लौट आता है। तुझे याद होगी जब वैष्णो देवी या किसी देवता या यमदूत के संदेश वाले छपे हुए या हाथ से लिखे पोस्टकार्ड आते थे। उन पर धमकी होती थी कि इसे छपवा कर आज ही पचास जगह ठेल, नहीं तो स्वर्ग की एंट्री का पासवर्ड भूल जाएगा। तब लगता था न कि डाकखाने वालों ने भी पोस्ट कार्ड बेचने के लिए एजेंट रख छोड़े हैं। अब समझ में आया कि वे भी फारवर्डिंग एजेंट या ठलुए होते थे। वही ठलुए अब टेक्नोलॉजी के ठेलुए हो गये हैं।
-सूरज प्रकाश-