फौलाद बन गई हैं अभिमान की शिलायें
पाले हैं बैर उसने कैसे उसे मनायें
मगरुर है वो इतना, टूटेगा चाहे जितना
आहें नहीं भरेगा, सहे चाहे दर्द जितना
आपस के फासले अब बढते चले जायें,
फौलाद बन गई है अभिमान की शिलायें
उसकी हर अदा थी मदहोश करने वाली
पीकर बहकना उसका करना जाम खाली
बेचैनियों के आलम कैसे उसे बतायें
फौलाद बन गई हैं अभिमान की शिलायें
जिन्दगी में उसका आना जादू सा कर गया था
हजारों ख्वाहिशें मेरी पूरी भी कर गया था
मायूसियों के ये पल अब कैसे उसे दिखायें
फौलाद बन गई है अभिमान की शिलायें
उसके बिना तो हर पल लगता है खाली खाली
सुलगते हैं अरमां, रहती है बदहाली
उसके बिना हम जी भी न पायें।।
-दिव्या यादव-