आज के हालात में यदि दिल्ली के राजनैतिक फूलक पर जमी सियासी पार्टियों-कांग्रेस, भाजपा और आम पार्टी के किए कामों की समीक्षा की जाए जो इसमें आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी दिखलाई देता है। यहां के लोग शीला दीक्षित के किए कामों की सराहना तो करते है लेकिन पार्टी स्तर पर उनका सक्रिय न रहना कांग्रेस में कोई जोश पैदा नहीं करता। इसी तरह भाजपा का भले ही तीनों नगर निगमों पर कब्जा है लेकिन निगमों में फैले भ्रष्टाचार और सीलिंग के मामले को लेकर दिल्ली के लोग भाजपा से काफी खफा हैं। ऐसे में 26 नवम्बर 2012 में बनी आम आदमी पार्टी ने जहां पहली मर्तबा विधानसभा की 28 सीटें जीतकर 49 दिन की कांग्रेस से मिलकर साझा सरकार बनाई थी, वहीं पर इसी पार्टी ने वर्ष 2015 में विधानसभा की 70 सीटों में से 67 सीटें जीतकर जो रिकार्ड बनाया था वह आज तक कांग्रेस और भाजपा की आंख की किरकिरी बना हुआ है। अभी दिल्ली विधानसभा के चुनाव का समय तो नहीं आया परंतु भाजपा, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी अपने स्तर पर इसकी तैयारी में जटी हैं। आम आदमी पार्टी तो लोकसभा चुनाव के लिए भी पूरे दमखम के साथ मैदान में उतर चुकी है और इसमें पार्टी के संगठन को मजबूत बनाने के साथ-साथ दिल्ली सरकार की उपब्धियां भी डोर टू डोर बतायी जा रही है। इस पार्टी ने अपनी और से दिल्ली के लोकसभा सीटों के लिए अपने प्रभारी तक नियुक्त कर दिए है, संभवत आगे चलकर वे पार्टी के प्रत्याशी भी घोषित हो सकते हैं। ऐसे में जब किसी सभा या मिटिंग में मैं लोगों से यह पूछता हूं कि आने वाले समय में दिल्ली का राजनैतिक परिदृश्य कैसा होगा और यहां किस पार्टी की सरकार बनेगी तो अधिकतर लोग आम आदमी पार्टी का ही नाम लेते हैं।
दिल्ली के लोग वैसे तो कांग्रेस या भाजपा के ही समर्थक माने जाते हैं लेकिन अब वे आम आदमी पार्टी को ही बेहतर विकल्प मानते हैं ऐसा क्यों है? इस के कई कारण है। मसलन यहां की बढ़ती आबादी और बिहार व उत्तर प्रदेश से आए लोगों से यहां का राजनैतिक समीकरण पहले जैसा नहीं रहा। चिरागों को बुझा भाजपा और कांग्रेस के नेताओं में चुनाव लड़ने का जोश तो है लेकिन उनके कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर कोई काम नहीं कर रहे हैं। यहां की दलगत राजनीति ने लोगों को धर्म और जाति के सवालों में ऐसा उलझा रखा है कि जिसमें लोगों के बुनियादी सवाल और विकास की बातें सब दबी रह जाती हैं। वैसे भी दिल्ली सरकार के पास उतने अधिकार नहीं हैं जितना कि अन्य राज्य की सरकारों के पास हैं। यहां केजरीवाल सरकार को यदि कोई काम करवाना होता है तो उन्हें डीडीए की ओर देखना पड़ता है। यहां की पुलिस दिल्ली सरकार के अधीन नहीं है लिहाजा कानून-व्यवस्था की बिगड़ती हालत में भी आम आदमी पार्टी अपनी आलोचनाएं सुनती है। वैसे केजरी सरकार ने अपने तई जो काम किये हैं उनमें दिल्ली के निजी स्कूलों की मनमानियों पर रोक लगाना और दिल्ली में सभी प्रकार के इलाज और दवाईयां मुक्त उपलब्ध कराना ऐसे कार्य हैं जिन्होंने दिल्लीवायिों का दिल जीत लिया है। दिल्ली की जनता भी देख और समझ रही है कि यदि अरविंद केजरीवाल किसी अच्छे काम को करने की पहल करते हैं तो भाजपा और कांग्रेस तो क्या यहां के गवर्नर भी उसमें अडंगा लगाते रहें है। कई बार केजरी सरकार को गिराने की कोशिशें भी हुई लेकिन विरोधियों को उसमें मुंह की खानी पड़ी। अभी हाल ही में दिल्ली विधानसभा के विशेष सत्र में स्वयं मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बताया कि उनके उपर चार हमले हो चुके हैं। पहले सरकारी कार्यक्रम में छत्रसाल स्टेडियम में उन पर स्याही फेंकी गई, फिर दिल्ली सचिवालय में प्रेसवार्ता के दौरान उन पर जूता फेंका गया। मगर इन मामलों में आज तक चार्जशीट तक दाखिल नहीं की गई और न ही इस बात का पता लगाया गया कि इन हमलों के पीछे किसका हाथ रहा है। गत दिनों सिग्नेचर ब्रिज के उद्घाटन के मौके पर भाजपा सांसद मनोज तिवारी ने अपने समर्थकों के साथ हंगामा किया और मुझ पर पानी की बोतलें फेंकी गई। इसमें भी उल्टे मुझ पर ही प्राथमिकी दर्ज कर ली गई। अब चौथी बार मुझ पर जो मिर्ची से हमला हुआ उसमें मिर्ची फेंकने वाला भाजपा का कार्यकर्ता ही निकला। इसीलिए में यह बुझा दो तो कहना चाहता हूं दिल्ली और यहां की जनता सुरक्षित नहीं है। यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी एक मुख्यमंत्री को सुरक्षा नहीं दे सकते तो उन्हें अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए। अरविंद केजरीवाल का यह कहना काफी हद तक सही लगता है कि मैं झूठे वादों की पुलिंदा लेकर सियासत करने नहीं आया हूं और न ही किसी से कहता हूं कि देश में बाहर के कालेधन को लाकर मैं हर किसी को 15 लाख रूपये दंगा। मैं वही वायदे करता हूं जो पूरे हो सकें। सीलिंग को हम मुद्दा नहीं मानते बल्कि यह जनता के लिए जीवन-मरण का सवाल है। जिन लोगों के कारोबार सील हो गए उनके लिए परिवार चलाने की समस्या खड़ी हो गई है। मगर भाजपा ने इसके लिए कुछ नहीं किया। एक सील को तोड़ने से क्या दिल्ली के लोगों की सीलिंग से निजात मिल जायेगी? दिल्ली में मैट्रो का किराया बढ़ा दिया गया परंतु भाजपा के सांसदों ने उनका कोई विरोध नहीं किया। इसी तरह आम आदमी पार्टी के दिलीप पांडे का कहना है कि हमने घर-घर जाकर लोगों से पूछा था कि अपने सांसद द्वारा कराए गए दो महत्वपर्ण कार्य बता दीजिये तो भाजपा के 99 प्रतिशत कार्यकर्ता अपने सांसदों के किए कार्यों को नहीं बता सके। इसमें कईयों ने तो यह तक कहा कि हमसे गलती हो गई कि हम लोगों ने एक चमकते हुए सितारे को आसमान से उतार कर अपने घर में टांगने की कोशिश की। अरविंद केजरीवाल के किए काम भले ही किन्हीं लोगों को रास न आते हो लेकिन जानने वाले जानते हैं कि उनसे एंटी क्रप्शन ब्रांच इसलिए छीन ली गई थी ताकि भ्रष्टाचार में लिप्त अफसरों के खिलाफ कोई कारवाई न हो सकें। बहरहाल, अपने साढ़े तीन साल के कार्यकाल की तुलना करते हुए अरविंद केजरीवाल का यह कहना कि उन्होंने जितने काम दिल्ली में किए हैं, उतने काम नरेन्द्र मोदी अपने 12 साल के गुजरात शासन के दौरान भी नहीं कर पाए, कोई अतिश्योक्ति नहीं है। केजरीवाल तो यह भी कहते हैं कि हमने अपने कार्यकाल में जितने भी निर्णय बता सके नै एक कहा कि लिए, उनसे जुड़ी सभी 400 फाइलें, निकलवाई गई, लेकिन केन्द्र सरकार को इनकी जांच में कुछ भी नहीं मिला। यह आप सरकार की ईमानदारी का एक बड़ा प्रमाण है और ईमानदारी का यह प्रमाण पत्र मुझे केन्द्र सरकार से मिला है। गौरतलब है कि अपनी स्थापना के 6 सालों के दरमियान आम आदमी पार्टी के कई नेताओं को पार्टी से बहार या किनारे कर दिया गया और वे आज भी अरविंद केजरीवाल को निरकुंश डिक्टेटर ही कहते हैं। इनमें कुमार विश्वास का कहना है। कि ‘पराए आंसूओं से आंख नम कर रहा हूँ मैं, भरोसा आजकल खुद पर भी कुछ कम कर रहा हूं, बड़ी मुशकिल से जागी थी जमाने की निगाहों में, उसी उम्मीद के मरने का मातम कर रहा हूँ मैं'। दिल्ली की एक नहीं बल्कि समस्याएं हैं और वे किसी नेता की लफ्फाजी से पूरी नहीं हो सकतीं। ऐसे में अन्ना आंदोलन की कोख से जन्मीं आम आदमी पार्टी यदि कई उतार-चढ़ावों के बाद अपने दम पर अगला चुनाव जीतने की बात कहती है तो इस पर त्वरित कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती, लेकिन फिलहाल दिल्ली में अन्य राजनैतिक दलों की अपैक्षा अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता का ग्राफ काफी ऊंचा दिखलाई देता है। संप्रतिवरिष्ठ पत्रकार है।