चुनाव विश्लेषक बन संवारें करियर--युवा मन

भारत में चुनावों को लोकतंत्र का मेला माना जाता है। यह मेला पूरे साल विभिन्न रंग-रूप में चलता रहता है। नगर निगम चुनाव या विधानसभा और लोकसभा चुनाव के आयोजन भी धूमधाम से आयोजित होते हैं। अगर आप राजनीति और चुनावी गणित में दिलचस्पी रखते हैं, मतदाताओं की नब्ज पकड़ने में महारत हासिल है तो यह मेला चुनाव विश्लेषक के रूप में आपके लिए अवसर लेकर आता है। पिछले छह माह में लोकसभा और फिर दो राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद अब जम्मू-कश्मीर और झारखंड में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसके बाद दिल्ली औ र बिहार जैसे राज्य कतार में हैं। ऐसे में, बतौर सेफोलॉजिस्ट यानी चुनाव विश्लेषक आप यहां अपनी भूमिका तलाश सकते हैं...


योग्यता और कोर्स:- वैसे तो यह क्षेत्र सबके लिए खुला है लेकिन उन युवाओं को खास तवज्जो दी जाती है जिनके पास गणित और सांख्यिकी या राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में से किसी एक की डिग्री है। इनके अलावा समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र या प्रबंधन भी इस क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद कर सकते हैं। हालांकि ध्यान रहे किताबी ज्ञान की जगह चुनाव परिणाम की सटीक भविष्यवाणी करियर को नई ऊंचाई देने का मूलमंत्र है। एक चुनाव विश्लेषक की नौकरी चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी से जुड़ी है। आमतौर पर चुनाव विश्लेषण को राजनीति विज्ञान के एक अंग के रूप में पढ़ाया जा रहा है। विश्लेषक के लिए कोई औपचारिक प्रशिक्षण संस्थान नहीं है। भारत में इस पेशे को बीस साल पहले तब पहचान मिलने लगी थी जब प्रणब रॉ य, डॉ. भास्कर राव, योगेन्द्र यादव, यशवंत व्यास जैसे कई लोगों ने इसमें अपनी अलग पहचान बनाई। धीरे-धीरे चलकर कई और लोग भी चुनाव विश्लेषक के रूप में युवाओं के प्रेरणा-स्रेत बने। बाद में चुनावी सव्रे करने के लिए बाजार में तरह-तरह की सं स्थाएं सामने आई और इन सबने बहुत सारे युवाओं को अपने यहां सव्रे के काम के लिए रोजगार दिया।


रिसर्चर और एनालिस्ट के रूप में उन्हें इस काम से जोड़ा। अब ऐसी कंपनियां और संस्थाएं राजनीतिक दलों और मीडिया संस्थानों की जरूरत में शामिल हो गई हैं। आए दिन इनकी सेवा विभिन्न राजनीतिक दल और बड़े राजनेता भी लेने लगे हैं। पहले यह काम गिने-चुने मौके पर ही होते थे लेकिन अब यह रोजमर्रा की दुनिया में शामिल गया है। चुनाव में मैनेजमेंट की बढ़ती भूमिका ने चुनाव सव्रे को भी अपना अंग बना लिया है। स्किल चुनाव के सभी पहलुओं का अध्ययन और उसके अतीत की जानकारी जरूरी है। चुनाव विश्लेषक की नौकरी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा संग्रह और डाटा संकलन है। चुनाव परिणाम की भविष्यवाणी करने के लिए प्रमुख औजार या विधियों के इस्तेमाल की कला आनी चाहिए। सर्वेक्षण के दौरान एकत्र की गई जानकारी की व्याख्या करने के लिए अच्छा डेटा विश्लेषण कौशल जरूरी है। इसके अलावा राजनीति में रुचि होना जरूरी है। राजनीतिक इतिहास और विभिन्न राज्यों के सामाजिक पृष्ठभूमि का ज्ञान होना चाहिए। एक अच्छे चुनाव विश्लेषक के रूप में साख और धाक तभी जमेगा, जब भविष्यवाणी सही हो। अगर थोड़ी गलती हुई तो आलोचना झेलने के लिए भी तैयार रहना पड़ता है। ऐसे में पूर्वानुमान गलत होने पर झटका सहने के लिए तैयार रहें।


अवसर:- कहां-कहां इस क्षेत्र में अवसर मूल रूप से चुनाव के दौरान संगठनों, टेलीविजन चैनलों और समाचार पत्रों के लिए अनुसंधान में हैं। इनके अलावा प्रमुख राजनीतिक पार्टयिों ने भी चुनाव सर्वेक्षण के लिए ऐसे लो गों को नियुक्त करने शुरू कर दिए हैं। इसमें वे एजेंसी की मदद भी लेते हैं। एक्जिट पोल का संचालन करने के लिए मीडिया घरानों ने भी ऐसे लोगों को काम पर रखने की पहल की है। युवा चाहें तो इस क्षेत्र में फ्रीलांसर के रूप में या कर्मचारी के रूप में दोनों काम कर सकते हैं। चुनाव सव्रे को लेकर चर्चित संस्थाएं जैसे आईएमआरबी, एसी नीलसन, टीएनएस, और सी वोटर आदि में काम करने के मौके हैं। चुनाव के अलावा जनप्रतिनिधि भी इलाके में अपने काम और पब्लिक का मूड भांपने या रायशुमारी के लिए इन रिसर्चरों या विश्लेषकों की सेवाएं लेते हैं। आप इस क्षेत्र में भी भूमिका निभा सकते हैं। मेहनताना किसी भी एजेंसी या संस्था में बतौर सहयोगी या रिसर्चर काम से जुड़ने पर प्रतिमाह 35 से 40 हजार रुपये प्रतिमाह पारिश्रमिक मिल जाता है। हालांकि अनुभव और पहचान मिलने पर एक चुनाव विश्लेषक साल में 15 लाख या इससे अधिक कमा सकते हैं। अनुभव और प्रतिष्ठा हासिल होने पर अपनी सव्रे एजेंसी खोलकर लाखों रुपये कमा सकते हैं। यहां काम के साथ पहचान और आगे बढ़ने के कई मौके सुलभ हैं।