परमात्मा को रिझाना तभी सम्भव है,
जब हम इन्सानों को भी अपनाएं।
जिसमें दास भावना है, धर्म के क्षेत्र में वही ऊँचा माना जा सकता है।
अभिमान जूते में कंकर की तरह होता है।
जो दुःख ही देता है।
हम, महापुरुषों का नाम लेते हैं।
उनकी पूजा करते हैं। हम उनको मानने तक सीमित न रहकर उनकी (बात) भी मानें।
अगर किसी को मरता-कुचलता देखकर अपने मन में खुशी महसूस करते रहेंगे तो हम धार्मिक नहीं है। ।
सद्गुरु बाबा हरदेव सिंह जी