संतजनों के जिस्मानी महापुरुष वजूद इस धरती पे आए, जन्म लिया इस धरती पे, इस धरती पे जिए वो भी और जिस्म आखिर मिट भी गए, लेकिन उनके शरीर की अहमियत रही है क्योंकि उनके घट में उजाला ही उजाला रहा और उसी उजाले से औरों को भी प्रज्ज्वलित करते रहें। इस भाव से उन्होंने हर इंसान को ये जागृति देने के ये प्रयास किए और वाकई ही जिन्होंने ध्यान दिया इस ओर उन्होंने ही अपना संवार लिया, उन्होंने ही लाभ प्राप्त कर लिया। उन्होंने ही दोनों जहानों की बाजी जीत उन्होंने ही दोनों जहानों की बाजी जीत ली ।वही मुख उजला करने वाले बन गए। वही इंसान कहलाने के हकदार बन गए। वही इस धरती के लिए वरदान बन गए और उन्हीं की बदौलत संसार में इस प्रकार से जो अच्छाई और नेकी जिसके बारे में। हम कहते हैं कि खत्म हो गई है, मिट गई। है वो उसी के कारण वो अच्छाई और। नेकी, वो प्रेम, वो करुणा, वो दया, वो भाईचारा उसका अस्तित्व हमें मौजूद महसूस होता है। जैसे दास अक्सर कहता है कि मालिक ने कोई कसर नहीं छोड़ी इतने और प्लेनेटस को हम देखते हैं उनमें धरती का कितना सुंदर रूप! कभी जो स्पेश क्राफ्ट जाते हैंऔर कितने हजारों मील दूर जाकर धरती का चित्र खींचते हैं तो कितना सुंदर ! कहीं . पर नीला रंग जो हमारे कितने सागर हैं, धरती के हिस्से में तो कहीं हरियाली कहीं । पर सफेद-सफेद जो नजर आता है बर्फ से ढकी हुई चोटियां तो इस प्रकार से एक सुंदर रूप धरती का मालिक ने बनाया हैऔर केवल दूर से ही नहीं करीब से भी हम देखते हैं सागर देखते हैं, झरने देखते हैं, हरियाली देखते हैं, पेड़-पौधे देखते हैं, फूल देखते हैं, कलियां देखते और भी। सुंदर नजारे देखने को मिलते हैंतो रूप तो धरती का इस मालिक ने सुंदर बनाया ही है और इंसानों ने कुछ प्रगति की और ऐसी-ऐसी इमारतें खड़ी की हैं जो इतनी सुंदर लगती हैं, लेकिन वास्तविकता में। वो सुंदरता उस रूप में सुंदरता नहीं है जो । अहमियत इंसानों के व्यवहार की सुंदरता है। उसके कारण जो सुंदरता होगी वही वास्तविकता में महत्ता रखेगी। हम कहीं पर जाते हैं कुदरत के नजारे देखते हैं और वहीं पर अगर कोई मार-काट हो रही हो तो क्या हम आनंद ले पाते हैं उन नजारों का? केवल और केवल हाहाकार मची होती है वहां पर। नजारे तो अपनी जगह पर कायम हैं लेकिन वहां पर जो सुंदरता होने के बावजूद हम एकदम पीड़ा में आ जाते हैं, क्योंकि इंसान इस तरह से विचरण कर रहे हैं, कड़वाहट उगल रहे हैं। तो हर मुल्क में अगर इंसानों की कुछ तो हर मुल्क में अगर इंसानों की कुछ ऐसी फितरत बन जाए, ऐसी एक सुंदरता बन जाए और धरती के हर मुल्क में, हर गांव, हर कस्बे में, हर मोहल्ले, हर घर में ऐसा एक सजा हुआ संद हो तो फिर इस धरती को जन्नत नहीं कहेंगे तो और क्या कहेंगे? इसको हम एक स्वर्ग नहीं कहेंगे तो क्या कहेंगे? जैसे दुनिया में पुराने समय से ही पानी प्यास बुझाने के लिए है। यह तो नहीं कि उस वक्त भोजन किया करते थे या कोई अच्छे वस्त्र पहन लिया करते थे, तो उनकी प्यास बुझा करती थी।