जैसे एक क्यारी में कितने प्रकार के हम फूल सजे होते हैं, एक प्रकार का फूल नहीं कहता है कि इस क्यारी से दूसरे फूल को कि 'तू चला जा, केवल मेरी प्रकार के फूल इस क्यारी में रहेंगे और वो अनेकों प्रकार के फल होने के कारण ही शोभा होती है उस बाग की, उस गुलजार की, इसी प्रकार से अनेकता में सुंदरता होती है लेकिन उस सुंदरता को हमने उस रूप में देखा ही नहीं है। उस रूप में हमने कद्र की ही नहीं हैऔर हमने इसी को ही एक विषैला रूप दे दिया और डायवरसिटी को कारण बनादिया लड़ने-झगड़ने के लिये, वैर करने के लिये, ईर्ष्या करने के लिये और इसी के कारण आज संसार की वो दशा नहीं है जो संतों-महात्माओं ने आशा की थी कि संसार का ऐसा रूप हो, जहां पर अमन हो, सुकून हो, शांति हो। अमन और शांति कहां पर होगी अगर टालरेंस ही नहीं है, अगर वैर, ईष्र्या, नफरत ही करेंगे, अगर दूसरों को नीची दृष्टि से ही देखेंगे, केवल भाषाओं के कारण ही टकरा जायेंगे तो इस प्रकार से शांति कहां पर होगी? अमन और शांति कायम करने के लिये एक मूल की तरफ ही मुड़नाहोगा। जैसे कहा कि ये मूल हमारा परमात्मा है, अल्लाह कह लो, परमात्मा कह लो, विठ्ठल कह लो, पांडुरंग कह लो, राम कह लो, अनंत नाम हैं इसके लेकिन इस मूल की पहचान करना जरूरी है। इस प्रकार से महापुरुषों-संतजनों ने कहा कि उभरें हम अज्ञानता से, उभरें हम संकीर्णताओं से, उभर जायें हम वैर विरोध से, हम वहीं तक टिके न रहें। इस प्रकार से महापुरुषों-सन्तजनों ने जो सन्देश दिये हैं वो सारे संसार के लिये हैं, सारे संसार की भलाई के लिये हैं। प्रार्थनाएं भी इसीलिये की गई हैं कि 'सबका भला करो भगवान सबका सब विधि हो कल्याण'। और कल्याण किस तरह से होता है ये भीमहापुरुष ध्यान दिलाते हैं। हमने अपना भी जीवन कल्याणकारी करना है और बाकियों के लिए प्रार्थना कि देने कीसबका हो कल्याण कि इस भवसागर में डूबें नहीं, यह हीरे जैसा जीवन पाकर कौड़ियों के भाव बिकें नहीं, इनका भला हो । भला हो कि प्यार बना रहे, मिल वर्तन बना रहे, इसी में भलाई छिपी हुई है। इस मालिक खालिक के अनेक नाम हैं, चाहे ईश्वर कह लें, अल्लाह कह लें या गॉड कह लें लेकिन यह परमात्मा एक ही हैअगर हम इसे जीवन में ऊंचा दर्जा प्रदान करते हैं तो हमारा म्यार भी ऊंचा हो जाता है। इसी एक के साथ नाता जोड़कर ही जीवन महत्वपूर्ण बनता है। जो परमात्मा को प्रधानता नहीं देते, इसे भुलाकर जीवन जीते हैं, वे हमेशा गिरावट में रहते हैं। संसार में अनेक राजा हुए, विद्वान हुए, धनवान हुए, बलवान हुए लेकिन महत्ता उन्हीं को मिली जिन्होंने इस सत्य परमात्मा को जीवन में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किया। हिरण्यकश्यप स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानता था। वह परमात्मा को ऊंचा दर्जा देने को तैयार नहीं था। उसके बेटे प्रह्लाद ने परमात्मा का नाम लिया तो उस पर भी उसने कितने जुल्म ढाये, उसे मारने के लिए कितने प्रयास किए। इसलिए हिरण्यकश्यप को आज तक कोसा जा रहा है।
अमन और शांति कहां पर होगी