मंदिरों में चढ़ावे की राशि का सद्पयोग होना आवश्यक


देश में धर्म और आस्था को मानने वाले प्रायः सभी लोग है, जिसमें सामान्य लोग से लेकर करोड़पतियों की कमी नहीं, जो खुलकर दान करते हैं। वह लाखों-करोड़ों रुपए के सोने, चांदी और पैसे भगवान को अर्पित करते हैं, जिसका कोई औचित्य ही नहीं। भगवान को किसी रुपए-पैसों की आवश्यकता नहीं। वह केवल भक्तों के भाव के भूखे होते हैं। जिस परमपिता परमेश्वर ने यह जगत बनाया, मनुष्य, जीव-जन्तु बनाएं। ईश्वर की कृपा से ही लोगों को काबिलियत, सुख, शांति, धन और वैभव इत्यादि दिए हैं, उन्हें ही सोने, चांदी और रूपए भेंट करने का क्या औचित्य?
भारत देश में गरीबी और भुखमरी से हजारों लोग प्रतिदिन मर रहे हैं, किसी के पास दो वक्त की रोटी के लिए पैसे नहीं, तो किसी के पासख्तन ढकने के लिए कपड़े नहीं। यह लोग भीख मांगने को मजबूर है, इसकी भुखमरी के कारण लोग, चोर, डकैत और दुराचारी हो रहे हैं। इनके दुख-दर्द दूर करने वाला कोई नहीं। दूसरी ओर बड़े लोग करोड़ों रुपए मंदिरों में दान कर देते हैं और वह पैसा मंदिरों में भरे पड़े रहते है, जिसकी कोई उपयोगिता नहीं होती। इन मंदिरों के पुजारी और ट्रस्ट वालों के घरों में राजा-महाराजाओं की ठाठ-बाट और शानो-शोकत देखने को मिलती है। जबकि इन पैसों से गरीबों के लिए भोजन, घर, नौकरी, चिकित्सा, स्कूल, कॉलेज आदि की व्यवस्था की जा सकती है। कई मंदिरों और ट्रस्टों की ओर से कुछ धर्मार्थ कार्य किया जा रहा है पर उसका उतना फायदा देखने को नहीं मिलता।
भारत देश में विख्यात पद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरूपति बालाजी, शिरडी सांई बाबा, सिद्धी विनायक गणेश मंदिर, मीनाक्षी मंदिर, जगन्नाथ पुरी, वैष्णव देवी, कांशी विश्वनाथ, अमरनाथ गुुुफा, बद्रीनाथ, केदारनाथ, सबरीमाला मंदिर इत्यादि अनेको मंदिरों में करोड़ों रुपए के चढ़ावे दिए जाते हैं, इन पैसों का सही ढंग से उपयोग नहीं हो पाता। करोड़ों रुपए और सोने-चांदी मंदिरों में बेकार पड़े रहते हैं। दूसरी ओर भारत सरकार करोड़ों-अरबों रुपए विदेशों से कर्ज लेकर यहां का जनहित में कार्य करती है। देश करोड़ों रुपए के कर्ज में डूबा हुआ है, उस कर्ज को चुकाने के लिए कई गुना ब्याज जमा करना पड़ता है, इसलिए भारत देश का रूपया अन्य देशों की तुलना में बहुत न्यूनतम स्तर पर आ गया है।
भारत देश का विकास तो हो रहा है पर जितना विकास होना चाहिए उतना नहीं हो रहा। लोग सही समय और पूरा टैक्स जमा नहीं करते है, टैक्स चोरी से करोड़ों रुपए का नुकसान होता है। वर्तमान परिदृश्य में चारों ओर भ्रष्टाचार, रिश्वत, चोरी, लूट और फर्जीवाड़ा देखने को मिलता है। इस कारण भी भारत देश ठीक से विकास नहीं कर पा रहा। इसे रोकने के लिए सख्त कानून का होना अति आवश्यक है। एक ओर किसानों को समय पर खाद, बीज और पानी की समस्या बनी रहती है, जिसके कारण उन्हें खेती-किसानी में कोई फायदा नहीं हो रहा है। इस वजह से अनाज की महंगाई दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। इसके लिए हमारे देश के ही लोग जिम्मेदार है। हर व्यक्ति एक-दूसरे के प्रति प्रतिद्वंदात्मक रवैया रखता है, वह दूसरों को आगे बढने से रोकता है, बल्कि वह खुद भी आगे नहीं बढ़ पाता। आज की जिन्दगी सिर्फ दिखावे की हो गई है। लोग जाति, धर्म, आस्था के नाम पर बट गए हैं। निर्धनता जाति या धर्म देखकर नहीं आती। व्यक्ति चाहें तो अपने पैसों को सही समय और सही जगह पर खर्च करें, तो यह देश जन्नत बन सकता है। वह निर्धन व्यक्तियों के दुख-दुर्द को समझे, मदद करें, सहारा बने और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का प्रयास करें। भारत देश में अधिकतर लोग अपनी काली कमाई को छुपाने के लिए भगवान को भेंट के नाम पर करोड़ों रुपए चढ़ावा देते हैं, जिससे उनकी काली कमाई का हिसाब ना देना पड़े। अगर लोगों के बैंक खाते में पैसे रहेंगे तो सरकार को टैक्स जमा करना पड़ेगा और उसका हिसाब भी देना पड़ता है। इसलिए लोग मंदिरों में चढ़ावा चढ़ा देते हैं।
इसके लिए सरकार को पहल करनी चाहिए कि देश के बड़े-बड़े मंदिरों का पैसा जहां अरबो रुपए जमा है, उन पैसों को सरकार को बिना ब्याज के दिया जाना चाहिए, जिसका उपयोग केन्द्र या राज्य शासन जनता के हित के लिए लगाए और अधोसंरचना को बढ़ावा देकर का मुद्रिकरण बढ़ाए। इससे दो फायदे होंगे-पहला देश का पैसा देश में लगेगा और उसका ब्याज भी नहीं लगेगा। दूसरा मंदिरों में जमा करोड़ों रुपए जनता के हित में काम आएंगे, जिससे भगवान भी प्रसन्न होंगे। इन पैसों को सरकार यथा समय वापस भी कर सकेगी। इस प्रकार की योजना तैयार किया जाना चाहिए। देश के विभिन्न मंदिरों में दर्शन के लिए टिकिट निर्धारित की जाती है, जबकि टिकिट की आवश्यकता क्यों? मंदिरों के ट्रस्ट में करोड़ों रुपए जमा है, उसका उपयोग जनहित में नहीं किया जाता। जबकि मंदिरों के ट्रस्ट की ओर से प्रतिदिन श्रद्धालुओं को मुफ्त में भोजन, नास्ता, रूकने की व्यवस्था और प्रसाद इत्यादि का प्रबंध करना चाहिए। जबकि ऐसा कुछ भी नहीं किया जाता। दर्शन, ठहरने और भोजन के लिए बिना पैसे के कुछ भी नहीं मिलता। कुछ मंदिरों में पैसे चढ़ाने के लिए दबाव डाला जाता है। आज-कल मंदिरों में पूजा-पाठ एक व्यापार बन गया है। जहां देखों मंदिर बनाकर लोगों की आस्था के साथ खिलवाड़ किया जाता है। लोग अपनी भक्ति और आस्था के नाम पर दिल खोल कर मंदिरों में रुपए चढ़ाते हैं, जो पूरी तरह से अनुपयोगी रह जाते हैं।
इन सभी मंदिरों के पास जमा अकूत सोने का भंडार देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंक सकता है, जो फिलहाल निष्क्रिय पड़ा हुआ है। वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल के अनुसार देश के मंदिरों में करीब 3 हजार टन सोना पड़ा है। अर्थशास्त्री सोने के इस भंडार को निष्क्रिय मानते हैं, जिसका अर्थव्यवस्था में कोई योगदान नहीं है। ृगोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम्य के जरिये सरकार सोने के इस भंडार को सक्रिय पूंजी में बदलना चाहती है। आस्था के कारण देश में मंदिरों से सोना निकलवाना भी सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है। इस योजना के लिए देश की जनता को धार्मिक भावनाओं को ठेस ना पहुंचे वे इस इस योजना को जाने और समझे इसके लिए उन्हें जागरूक होना चाहिए। देश का पैसा देश में लगेगा और देश विकास करेगा। इसके लिए सभी लोगों को आगे आना चाहिए, समाज और देश को संगठित कर आस्था और विश्वास के साथ मंदिरों में जमा पैसों को सद्पयोग कराने का प्रयास करना चाहिए। इन पैसों से देश में समृद्धि और खुशहाली आ सकती है।


-तेजबहादुर सिंह भुवाल-