मन से बाहर निकालिए कंकड़


इसलिए संतजनों ने कहा है कि जब - तक हम काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी कंकड़ों को मन से नहीं निकालेंगे, तब तक आनंद का अनुभव नहीं होगा। अगर प्रभु का अहसास होगा तो फिर वाणी कड़वी नहीं होगी, फिर असहनशीलता नहीं होगी, फिर दुर्व्यवहार नहीं होगा, फिर किसी के प्रति विपरीत भावनाएं नहीं होंगी। अगर कहीं अहम् प्रबल होता है तो इसका कारण यही है कि प्रभु का अहसास खो गया है। इसलिए संतजन लगातार यह प्रेरणा देते हैं कि हम इस निराकार को न भुलाएं। अगर भक्तों ने आनंदमय जीवन व्यतीत किया तो उसका यही कारण था कि उनका नाता मालिक खालिक के साथ जुड़ा था। उन्होंने इसे ही अपनाया था, इसका ही आधार लिया था, इसी के रंग में अपने मन को रंगा था। उठते-बैठते, सोतेजागते उनकी जुबान पर तू ही तू के तराने रहते थे, उन्हें इसी का अहसास रहता था। इसलिए यही प्रार्थना की जाती है कि हे दाता ! ऐसे संतों से मिलाप करा जिनके मिलाप से तेरा ध्यान आ जाता है, तेरा अहसास बन जाता है वरना तो इस दुनिया में विचरण करते हुए जीवन का ज्यादातर समय तुझे भुलाकर ही व्यतीत होता है। हे प्रभु ! सबको सामर्थ्य दे ताकि सुबह-शाम, दिन-रात दुनिया और दुनियावी सिलसिलों के अहसास में न बीतकर तेरे अहसास में बीते ताकि जीवन का सफर सहज होता जाए। आज इंसान के लिए दुनिया के मौजमेले ही अहमियत रखते हैं। उसका जीवन केवल विषयों-विकारों तक ही सीमित रह गया है, इसलिए संतजन इंसान को बार बार पैगाम देकर झिंझोड़ते हैं कि जीवन का । बहुत महत्व है और आत्मा का कल्याण करना इस जीवन यात्रा का एक महत्वपूर्ण पहलू है। किसी मीनार को नीचे से देखते हैं तो वह बहुत ऊंची दिखाई देती है लेकिन जब उसी मीनार को हवाई जहाज से देखते हैं तो वह छोटे खिलौने जैसी नजर आती है। जब नीचे खड़े थे तो वह मीनार बहुत ऊंची नजर आ रही थी लेकिन जब उससे भी अधिक ऊंचाई पर पहुंच गये तो वही मीनार छोटी महसूस होने लगी। इसी प्रकार जो प्रभु-परमात्मा से नाता जोड़कर मानवता की ऊंचाइयों तक पहुंच जाते हैं, उन्हें संसार और संसार की उपलब्धियां बहुत छोटी महसूस होती हैं। संतजन ऐसी ऊंचाइयां प्राप्त करने के लिए हमेशा प्रयत्न करते हैं। वे औरों को भी प्रेरित करते हैं कि हमें ऐसी भावनाओं से युक्त होना है जिससे हम भी सुकून और चैन से रहें और औरों के लिए भी सुख का कारण बनें। बीता हुआ समय गुजर चुका है। और आने वाला समय अभी आया नहीं है। इंसान के हाथ में केवल वर्तमान है, इसी वर्तमान में ही सही दिशा की तरफ कदम बढ़ाना जरूरी है। इंसान के शरीर की यात्रा एक दिन सम्पन्न हो जाती है परंतु आत्मा की यात्रा इसके साथ सम्पन्न नहीं होती। शरीर जिन पांच तत्वों से बना है, वे अपने-अपने तत्वों में मिल जायेंगे लेकिन आत्मा कहां जाएगी, यह ज्ञान होना जरूरी है, इसलिए सोच-विचारकर वर्तमान में ही वह कदम उठाना जरूरी है जिससे आत्मा का भी आगे वाला समय सुखमय हो जाये।