कविता
लो, आ गया फिर चुनाव!
न जाने इस बार
किस-किस की डूबेगी नाव
इसी सोच में पड़े नेतागण
घूमेंगे अब गांव-गांव
पहले जहां यदा-कदा ही
पड़ते थे उनके पांव
लो, आ गया फिर चुनाव!
आज जब कि बाजार में
कई चीजों का बना है अभाव
और जो मिल भी रही है
उनका चढ़ा हुआ है भाव
तब हमारे गांवों-गलियों में
नेताओं का नहीं रहेगा अभाव
लो, आ गया फिर चुनाव!
खेलेंगे हर खेल, चलेंगे हर दांव
बदलते रहेंगे अपना हावभाव
पर चुनाव समाप्त होते ही
बदल जायेगा उनका स्वभाव
और फिर खत्म हो जाएगा
जनता से उनका कथित लगाव
लो, आ गया फिर चुनाव!